मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि- प्रकृति से हम सनातन से जुड़े हैं, हमारे रोम-रोम में प्रकृति है। प्रकृति का काम ही संतुलन बनाए रखना है। प्रकृति पर्यावरण के साथ राजनैतिक पर्यावरण का भी ख्याल रहना होगा।
जलवायु परिवर्तन का विषय अब सभी के लिए महत्वपूर्ण बन चुका है। इसे आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक माना जाता है। विश्वभर में इसके असर को कम करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन की पहल पर राज्य को जलवायु परामर्श में अग्रणी भूमिका देने की योजना बनाई जा रही है। आइए देखें कैसे मध्य प्रदेश इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है और इसके पीछे की दूरदर्शिता क्या है।
मध्य प्रदेश, जिसे भारत का दिल कहा जाता है, अपनी विविधभूगोलिक विशेषताओं और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है। यहाँ की हरे-भरे जंगल, नदियाँ और पहाड़ियाँ इसे प्रकृति के करीब लाते हैं। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए इस क्षेत्र में काफी अवसर हैं। यहाँ की जैवविविधता और वन संपदा न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक है, बल्कि वैश्विक जलवायु संकट के समाधान के लिए भी अहम भूमिका निभा सकती है
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हमें प्रकृति के साथ पुनः जुड़ने की आवश्यकता है। उनके अनुसार, “हमारी संस्कृति हमेशा से ही प्रकृति के संग रहकर चलने की रही है। हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने और प्रकृति के साथ संतुलन स्थापित करने की जरूरत है।” उनका यह दृष्टिकोण न केवल पारंपरिक मूल्यों को पुनःस्थापित करने की बात करता है, बल्कि एक स्थायी भविष्य का निर्माण करने की भी पहल करता है।
मध्य प्रदेश सरकार इस दिशा में कई कदम उठा रही है। राज्य में वृक्षारोपण अभियानों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, जिससे हरित आवरण को बढ़ावा मिल सके। इसके अतिरिक्त, जल संरक्षण की दिशा में भी ठोस कदम उठाए जा रहे हैं, जिससे जल संसाधनों का संरक्षण किया जा सके। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का भी विकास किया जा रहा है।
सरकार का एक और महत्वपूर्ण प्रयास समाज को इस विषय में शिक्षित और जागरूक करना है। स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरणीय शिक्षा को अनिवार्य किया जा रहा है, जिससे नई पीढ़ी जलवायु संकट की गंभीरता को समझ सके और इसके समाधान में सक्रिय भूमिका निभा सके।
मध्य प्रदेश सरकार का जोर केवल सरकारी नीतियों पर नहीं है, बल्कि सामाजिक संगठनों और जनता की भागीदारी पर भी है। विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही, जन साधारण को भी इस दिशा में आगे आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो जलवायु परिवर्तन से सीधे प्रभावित होता है। मध्य प्रदेश में कृषि को जलवायु अनुकूल बनाने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को जलवायु-स्मार्ट तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वे बदलते मौसम के साथ तालमेल बैठा सकें और अपनी उपज को सुरक्षित रख सकें।
उद्योगों का भी जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मध्य प्रदेश में स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है। उद्योगों को ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और प्रदूषण कम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, हरित भवन और स्मार्ट शहरों की अवधारणा को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।
मध्य प्रदेश न केवल अपने राज्य के लिए, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी जलवायु परामर्श में योगदान देने की योजना बना रहा है। इसके लिए नवीनतम तकनीकों और वैश्विक विशेषज्ञों के साथ मिलकर रणनीतियाँ बनाई जा रही हैं। राज्य सरकार की कोशिश है कि मध्य प्रदेश को एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित किया जा सके, जिसे अन्य राज्य भी अपना सकें।
इन सभी प्रयासों का उद्देश्य केवल वर्तमान संकट का समाधान करना नहीं है, बल्कि एक स्थायी और संतुलित भविष्य का निर्माण करना है। यदि सही दिशा में और सही समय पर कदम उठाए जाएँ, तो न केवल मध्य प्रदेश बल्कि समग्र भारत जलवायु परिवर्तन के समक्ष मजबूती से खड़ा हो सकेगा।
This post written by shreyasi