भारतीय सेना की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब शिव तांडव स्तोत्र की ध्वनि से हॉल गूंज उठा। यह पल उस वक्त और भी खास हो गया जब ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी दी गई और इस ध्वनि को सैन्य शक्ति, संकल्प और आत्मविश्वास का प्रतीक माना गया। सेना के प्रेस कॉन्फ्रेंस में एयर मार्शल ए.के. भारती ने पाकिस्तान को धमकी दी और कहा कि “हमारा काम दुश्मन को तबाह करना है, डेड बॉडी की गिनती उनका काम है”।
भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई की। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया गया, साथ ही पाकिस्तानी आर्मी के 35-40 जवान और 100 आतंकवादी मारे गए। भारतीय सेना ने S-400, आकाश, BARAK-8, और एंटी-एयरक्राफ्ट गन्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करते हुए पाकिस्तान के हौसले को तोड़ दिया।
भारतीय सेना के इस महत्वपूर्ण ऑपरेशन के दौरान शिव तांडव स्तोत्र की ध्वनि का चयन इस विश्वास के साथ किया गया कि यह शिव की शक्ति और संकल्प को दर्शाता है। शिव तांडव, जो कि महादेव शिव के आक्रामक और विनाशकारी रूप का वर्णन करता है, भारतीय सेना की ताकत और पाकिस्तान को मिले जवाब का प्रतीक बन गया।
महादेव, शंकर, शंभू, महाकाल आदि नामों से प्रचलित शिव अनंत हैं। शिव पुराण की कैलास संहिता में वर्णित श्लोक में शिव कौन हैं इसके बारे में बताया गया।
“नमः शिवाय साम्बाय सगणाय ससूनवे। प्रधानपुरुषेशाय सर्गस्थित्यन्तहेतवे॥
इस श्लोक का अर्थ है कि जो प्रधान यानि प्रकृति और पुरुष के नियन्ता तथा सृष्टि, पालन और संहार के कारण हैं, उन्हें मेरा प्रणाम है. यानि भगवान शिव सृष्टि को पालने वाले भी हैं और इसका संहार भी इन्हीं के द्वारा होता है।
शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए की थी। यह स्तोत्र शिव के विभिन्न रूपों को दर्शाता है और इसे नकारात्मकता को दूर करने और भक्तों को दिव्य ऊर्जा से जोड़ने के लिए जाना जाता है। हिंदू धर्म में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह हर प्रकार की बुरी शक्ति को नष्ट करने की क्षमता रखता है।
भारतीय सेना द्वारा शिव तांडव स्तोत्र को इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल करना, राष्ट्रीय संकल्प और शक्ति के प्रतीक के रूप में इसे प्रस्तुत करना था। यह केवल एक धार्मिक गीत नहीं, बल्कि देश के सैनिकों की एकता, शक्ति और अद्वितीय संकल्प का संदेश भी था।
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥
इसमें बताया गया है कि ऐसे भगवान शिव को नमन करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि कदंब फूलों की शुभ और मन को मोहने वाली महक उनके चारों ओर फैली हुई है, जिन्होंने मन्मथ (प्रेम के देवता), त्रिपुरा (तीन नगर) का नाश किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों और यज्ञों को नष्ट कर दिया, जिन्होंने अंधक (उनके अंधे पुत्र), गजासुर नामक हाथी राक्षस और यम यानि मृत्यु के देवता का भी नाश किया है वे हमें समृद्धि प्रदान करें।
यानि ऐसे महादेव की कृपा बनी रहे जिन्होंने मृत्यु के देवता यम का भी नाश कर दिया। और हमारे देश के पायलट और वीर जवान भी आतंक फैलाने वाले आतंकवादियों का ऑपरेशन सिंदूर के जरिए नाश करके मृत्यु पर महादेव की कृपा से विजय पाए और अपने मिशन को पूरा करके सुरक्षित अपने वतन वापस लौट आए।
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः॥५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद् धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरीविजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद् विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर् गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम्॥१२॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मन्त्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१४॥
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥१५॥
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This Post Is Written By Abhinav Tiwari(abhiniya2000@gmail.com)