{ अनुज की रिपोर्ट }
.यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने राज्य में तीन साल तक के लिए कई श्रम कानूनों को निलंबित करते हुए अध्यादेश को अंतिम रूप दे दिया है।
यह राज्य में मौजूदा और नई औद्योगिक इकाइयों को मदद करने का एक प्रयास है,सूत्रों के मुताबिक, श्रम विभाग में 40 से अधिक प्रकार के श्रम कानून हैं, जिनमें से कुछ अब व्यर्थ हैं।
अध्यादेश के तहत इनमें से लगभग आठ को बरकरार रखा जा रहा है, जिनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निमार्ण श्रमिक अधिनियम शामिल है।
महिलाओं और बच्चों से संबंधित कानूनों के प्रावधान जैसे कि मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और मजदूरी भुगतान अधिनियम के धारा 5 को बरकरार रखा है, जिसके तहत प्रति माह 15,000 रुपए से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।
अन्य श्रम कानून, जो औद्योगिक विवादों को निपटाने, श्रमिकों व ट्रेड यूनियनों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ठेका व प्रवासी मजदूर से संबधित है, उन्हें तीन साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।