1. हिन्दी समाचार
  2. Religious
  3. Igas Lokparva: उत्तराखंड का अनोखा लोकपर्व इगास: आस्था, संस्कृति और वीरता का उत्सव

Igas Lokparva: उत्तराखंड का अनोखा लोकपर्व इगास: आस्था, संस्कृति और वीरता का उत्सव

उत्तराखंड का पारंपरिक पर्व इगास, जिसे बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है, राज्य के लोगों के लिए आस्था, संस्कृति और वीरता का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में दिवाली के 11 दिन बाद बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

By: Abhinav Tiwari 
Updated:
Igas Lokparva: उत्तराखंड का अनोखा लोकपर्व इगास: आस्था, संस्कृति और वीरता का उत्सव

उत्तराखंड का पारंपरिक पर्व इगास, जिसे बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है, राज्य के लोगों के लिए आस्था, संस्कृति और वीरता का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में दिवाली के 11 दिन बाद बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है। उत्तराखंड की धरोहर और परंपराओं का यह पर्व क्षेत्रीय पहचान के साथ-साथ देशभर में अपनी विशेष पहचान बना रहा है।

इगास पर्व का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

इगास पर्व से जुड़ी कई प्राचीन मान्यताएं और कथाएं हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं:

भगवान राम की अयोध्या वापसी: एक मान्यता के अनुसार, भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर गढ़वाल क्षेत्र में दिवाली से 11 दिन बाद पहुँची। इस विलंब से मिली सूचना के बाद गढ़वालवासियों ने अपने उत्सव को कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन मनाया, जिसे इगास पर्व के रूप में जाना गया।

गढ़वाल के वीर योद्धाओं की विजय: दूसरी मान्यता के अनुसार, गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में तिब्बत युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद सेना दिवाली से 11 दिन बाद गढ़वाल पहुँची थी। इस खुशी में यहां के लोगों ने उत्सव मनाना शुरू किया, जो आज इगास पर्व का रूप ले चुका है।

इगास का सांस्कृतिक महत्व

उत्तराखंड की लोकसंस्कृति में इगास पर्व का विशेष स्थान है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसमें राज्य की सांस्कृतिक विरासत और वीरता की कहानियां समाहित हैं। गढ़वाल क्षेत्र में यह पर्व खासतौर पर मनाया जाता है, जहां स्थानीय लोग परंपरागत रीति-रिवाजों और गीतों के माध्यम से अपने इतिहास और संस्कृति का सम्मान करते हैं।

इगास के प्रमुख आयोजन और परंपराएं

भैलो खेलना: इगास का मुख्य आकर्षण “भैलो” खेलना है, जिसमें स्थानीय लोग जलते हुए मशाल (भैलो) को घुमाते हैं। इस प्रथा में, रस्सियों में बंधे जलते हुए भैलो को घुमाकर लोग खुशियाँ मनाते हैं। यह खेल पर्व की रंगीनता और जीवंतता को बढ़ाता है और वीरता का प्रतीक माना जाता है।

भैलो गीत: इगास पर्व के दौरान विशेष भैलो गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में वीरता, प्रेम और आस्था की झलक मिलती है। ये गीत सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी उत्तराखंडवासियों के दिलों में बसे हैं और पर्व के माहौल को और भी जीवंत बनाते हैं।

गौ पूजा: इस दिन गौ माता की पूजा की जाती है, जिसे सुख, समृद्धि और उन्नति का प्रतीक माना जाता है। गौ पूजा के साथ पवित्र अग्नि का प्रज्वलन भी किया जाता है।

पारंपरिक नृत्य: इगास पर्व के अवसर पर उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के प्रतीक “झुमैलो” और “छपेली” जैसे पारंपरिक नृत्य भी प्रस्तुत किए जाते हैं। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन हैं, बल्कि पर्व के माध्यम से समुदाय की एकता को भी दर्शाते हैं।

इगास पर्व की वर्तमान पहचान

उत्तराखंड के लोग इस पर्व को बचाने और पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत हैं। राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के नेतृत्व में इगास पर्व को पूरे देश में पहचान दिलाने का प्रयास किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में दिल्ली में आयोजित इगास पर्व समारोह में भाग लेकर इस पर्व की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने इसे उत्तराखंड की धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा बताया और इसे राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में बलूनी के प्रयासों की सराहना की।

मुख्य बातें

कार्तिक शुक्ल एकादशी: इगास पर्व हर साल दिवाली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है।

पारंपरिक रस्में: भैलो खेलना, भैलो गीत, गौ पूजा, और झुमैलो जैसे नृत्य इगास पर्व की मुख्य विशेषताएं हैं।

सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक: इगास उत्तराखंड की प्राचीन लोकसंस्कृति और वीरता का प्रतीक है, जो वर्तमान पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ता है।

राष्ट्रव्यापी पहचान: राज्य के लोगों के प्रयासों से इगास अब न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में जाना जाने लगा है, जो राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखने का प्रतीक है।

इगास-बग्वाल उत्तराखंड की पहचान, वीरता, और लोकसंस्कृति का प्रतीक पर्व है। यह न केवल पुरानी परंपराओं को जीवंत रखता है, बल्कि राज्य के इतिहास, आस्था और वीरता की कहानियों को भी अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का माध्यम है। इगास का यह पर्व उत्तराखंड के हर व्यक्ति के दिल के करीब है और यह राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को मजबूत करने में एक महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

This Post is written by Abhijeet Kumar yadav

इन टॉपिक्स पर और पढ़ें:
Hindi News से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर पर फॉलो करे...