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पहले ही तैयार हो चूकी थी खून-खराबे की प्लानिंग, बदनामी के बाद खुद को निर्दोष बता रहे नेता…

By RNI Hindi Desk 
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नई दिल्ली: गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने और हिंसा के बाद किसान आंदोलन पर सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जाता है कि ट्रैक्टर परेड की अगुवाई वरिष्ठ नेताओं के हाथ से निकलकर ऐसे युवाओं के हाथ में आ गई थी, जिनका मकसद पहले से ही हिंसा फैलाना था। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पुलिस पहले से ही अनहोनी की आशंका जता चुकी थी। किसान नेताओं ने ट्रैक्टर रैली गणतंत्र दिवस पर नहीं करने की अपील की गई थी, लेकिन किसान नेता नहीं माने। हिंसा के बाद किसान नेता पूरे मामले से खुद को पीछे हटा रहे हैं।

परेड से पहले नेताओं ने कहा था

  • 17 जनवरी को योगेंद्र यादव ने किसानों से कहा था कि वे हथियार लेकर नहीं आएं। भड़काऊ भाषा से बचें।
  • 20 जनवरी को राकेश टिकैत ने दावा किया था कि ट्रैक्टर रैली में हिंसा नहीं होगी। हालांकि टिकैत का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वे किसानों से लाठियां लेकर आने को बोल रहे थे।
  • 25 जनवरी को दर्शनपाल सिंह ने चिंता जताई थी कि अगर ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ गड़बड़ हुई, तो यह सही नहीं होगा।
  • 25 जनवरी को ही गुरनाम सिंह चढूनी ने किसानों से अपील की थी कि पुलिस ने जो रूट तय किया है, परेड वहीं से निकालें।
  • 25 जनवरी को ही बलवीर सिंह राजेवाल ने शांतिपूर्ण तरीके से परेड निकालने की अपील की थी।

अब नेताओं ने पल्ला झाड़ा

राकेश टिकैत ने हिंसा के लिए दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराया है। इनका आरोप है कि पुलिस ने बैरिकेड्स लगाकर किसानों को भटकाया। इन्होंने हिंसा के लिए दीप सिद्धू को दोषी ठहराया। किसानों के संयुक्त मोर्चा ने हिंसा के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं माना। इसका कहना है कि कुछ लोगों के बहकावे से ऐसा हुआ। योगेंद्र यादव अब सफाई दे रहे हैं कि लाल किले पर हुई हिंसा के लिए उनके संगठन का कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने भी दीप सिद्धू को दोषी माना।

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