राज्यसभा के शीतकालीन सत्र में बुधवार को हंगामे के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष पर तीखी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि उच्च सदन की परंपराओं का पालन करना हर सदस्य का दायित्व है। स्थगन प्रस्तावों की बढ़ती संख्या पर अपनी असहमति जताते हुए उन्होंने विपक्ष को स्पष्ट संदेश दिया।
सभापति की नाराजगी
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सभापति धनखड़ ने विपक्ष के रवैये पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “पिछले 30 वर्षों में कभी भी स्थगन प्रस्तावों की संख्या इतनी नहीं रही। सदन के नियमों और परंपराओं का पालन करना सभी सदस्यों का कर्तव्य है।”
उन्होंने यह भी कहा कि नियम 267 के तहत स्थगन प्रस्ताव केवल विशेष राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों के लिए लाया जाना चाहिए। लेकिन वर्तमान सत्र में प्रस्तावों की संख्या अप्रत्याशित रूप से अधिक है, जो सदन के कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही है।
विपक्ष के मुद्दे और हंगामा
विपक्षी दलों ने गौतम अदाणी के मुद्दे, मणिपुर हिंसा, उत्तर प्रदेश के संभल में हिंसा और दिल्ली की कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चर्चा की मांग की। इसके लिए कई सांसदों ने स्थगन प्रस्ताव पेश किए।
आम आदमी पार्टी के सांसद ने दिल्ली में बढ़ते अपराधों पर चर्चा की मांग की, जबकि कांग्रेस, डीएमके और अन्य दलों ने मणिपुर और उत्तर प्रदेश के मुद्दों पर चर्चा के लिए जोर दिया। सभापति द्वारा सभी प्रस्तावों को खारिज करने के बाद विपक्ष ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया, जिसके चलते कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
क्या है स्थगन प्रस्ताव?
स्थगन प्रस्ताव का उपयोग उन राष्ट्रीय मुद्दों पर तत्काल चर्चा के लिए किया जाता है, जो अत्यंत गंभीर हों और जिनके त्वरित समाधान की आवश्यकता हो। इसे लाने के लिए सदन की सामान्य प्रक्रिया को स्थगित करना होता है।
हालांकि, सरकार ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह गौतम अदाणी के मुद्दे पर केवल राजनीति कर रही है।
सभापति का संदेश
धनखड़ ने विपक्ष को सलाह दी कि उच्च सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए परंपराओं का पालन करें। उन्होंने कहा कि इस तरह की अराजकता से न तो सदन का काम हो पाएगा और न ही देशहित के मुद्दों पर चर्चा संभव हो सकेगी।
सभापति जगदीप धनखड़ के बयान ने स्पष्ट कर दिया कि उच्च सदन की गरिमा और परंपराओं का पालन अनिवार्य है। स्थगन प्रस्तावों का दुरुपयोग सदन की कार्यक्षमता को बाधित करता है, और इससे बचा जाना चाहिए।