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श्री भगवान् के स्मरण से ही हो सकता है जीव का कल्याण

By: RNI Hindi Desk 
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श्री भगवान् के स्मरण से ही हो सकता है जीव का कल्याण

{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }

मानव , दानव, पशु पक्षी या कोई भी जीव आत्मा हो वो जिस शरीर में प्रवेश करती हैं उस योनि में वो अपने पिछले जन्म का फल भोगने आती है।

मनुष्य के कर्मों का लेखा जोखा तो उसके भाग्य के साथ ही लिख दिया जाता है। शरीर रूप में आकर तो उसे बस अधूरे कामों को पूरा करना होता है।

मनुष्य जीवन का चक्र ही यही है कि इस जन्म में अपने प्रारब्ध के फल भोगकर वो मृत्यु को प्राप्त होता है और अगले जन्म की और प्रस्थान कर जाता है।

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{ श्री अचल सागर जी महाराज }

मनुष्य अपने जीवन में जो भी भोगता है सब उसके कर्मों का प्रारब्ध होता है। श्री भगवान की कृपा से वो मनुष्य योनि में जन्म लेता है और भाग्य में लिखे हुए कार्यो को पूरा करता है।

लेकिन जैसे ही मनुष्य इस लोक में आता है उसकी आत्मा को वो भूल जाता है और शरीर को ही प्रधान मान लेता है।

उसे लगता है कि सारे भौतिक सुख का अर्थ ही जीवन है जबकि यह सच नहीं है। हकीकत यह है कि जीवन का सत्य उस श्री भगवान को प्राप्त करना है जिन्होंने सबको जन्म दिया है।

इसलिए मनुष्य को अपने आप को इस भौतिक संसार में सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए ना की इसमें आसक्त हो जाना चाहिए।

सदैव अपनी आत्मा को ध्यान करे, उस भगवान का ध्यान आकर जिसने हम सबको बनाया है ,तभी जीवन में कल्याण की और आप अग्रसर होंगे।

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