Lord Shiva: देवों के देव महादेव जिन्हें संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव को सृष्टि का संहारक माना जाता है इसलिए उन्हें महाकाल भी कहा जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति भगवान शिव हैं।
भगवान शिव को रूद्र नाम से भी जाना जाता है रुद्र का अर्थ है रुत् दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला इसलिए भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवे अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित हैं।
क्यों चढ़ाया जाता है भांग-धतूरा
आपको बता दें कि भांग और धतूरा की प्रकृति ही कड़वी और जहरीली होती है। भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है, और भगवान शिव के भीतर ही जहर को पचाने का सामर्थ्य है,इस कारण ये चीजें भगवान को अर्पित की जाती हैं।
दरअसल भगवान शिव पर भांग और धतूरा अर्पित करने का अर्थ है कि हम अपनी सभी बुराईयां जैसे मन की कड़वाहट आदि का त्याग कर रहे हैं। ऐसे में भगवान को यह चीजें अर्पित कर हम स्वयं को निर्मल करने का संकल्प लेते हैं।
भांग-धतूरा चढ़ाने की पौराणिक कथा
आपको बता दें कि भगवान शिव को भांग व धतूरा अर्पित करने की एक कथा प्रचलित है। पुराण के अनुसार भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पीकर संसार को तबाह होने से बचाया था।विष ग्रहण करने के बाद भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था,परन्तु भगवान शिव ने विष को अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था. तभी से शंकर भगवान को नीलकंठ कहा जाने लगा।
विष पीने के बाद वह व्याकुल होने लगे, क्योमकि विष का प्रभाव भगवान शिव के मस्तिष्क तक पहुंच गया था और भोलेनाथ बेहोश हो गए थे। देवताओं के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई. भगवान शिव को होश में लाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए।
देवताओं ने भगवान शिव के सिर से विष के प्रभाव को दूर करने के लिए उनके सिर पर धतूरा और भांग रख दिया जिससे उनकी मूर्छा दूर हो गई और जब से ही महाकाल पर भांग व धतूरा चढ़ाया जाने लगा।
शिव पुराण के अनुसार
शिव पुराण की कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कई चीजें निकली थी जिन्हें देवताओं और दानवों ने आपस में बांट लिया था। लेकिन जब समुद्र मंथन करने के समय उसमें से हालाहल विष निकला तो किसी ने उस विष को ग्रहण नहीं किया, और विष का प्रभाव इतना था कि से पूरी सृष्टि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ने लगा था।
फिर सभी देव और दानव भगवान शिव के पास गए। तब भगवान भोले भंडारी ने विष के दुष्प्रभाव से समूची सृष्टि की रक्षा के लिए विष के अपने गले में धारण कर लिया था,और जब से ही भगवान शिव को भांग-धतूरा चढ़ाया जाने लगा।
This post is written by PRIYA TOMAR
डिस्कलेमर-यह पोस्ट धार्मिक भावनाओं और धार्मिक क्रियाकलापों के आधार पर लिखा गया है RNI न्यूज़ चैनल इस जानकारी की पुष्टि और जिम्मेदारी नहीं लेता है।