कानूनी प्रक्रिया में न्यायालयों द्वारा अपराधियों या गवाहों को अदालत में पेश करने के लिए कई प्रकार के वारंट जारी किए जाते हैं। इन वारंटों में से एक गैर-जमानती वारंट (Non-Bailable Warrant – NBW) भी है। यह एक विशेष प्रकार का वारंट है जिसे तब जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति अदालत में उपस्थित होने से बचता है या गिरफ्तारी से बचने के लिए छिपता है। इस लेख के माध्यम से हम गैर-जमानती वारंट के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गैर-जमानती वारंट का मतलब है कि जब न्यायालय किसी आरोपी या गवाह को अदालत में पेश होने के लिए बुलाता है और वह उपस्थित नहीं होता, तो न्यायालय उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी कर सकता है।
इसके तहत पुलिस को उस व्यक्ति को गिरफ्तार करने और अदालत में पेश करने का अधिकार होता है। इस वारंट को जारी करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि व्यक्ति अदालत की कार्यवाही में भाग ले और कानूनी प्रक्रिया का पालन करे।
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 73 के तहत यह वारंट जारी किया जाता है, और यह मुख्य रूप से उन व्यक्तियों के लिए है जो अपराधों के आरोपी हैं या जिनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं। इसके अलावा, यह गवाहों के लिए भी जारी किया जा सकता है यदि वे गवाही देने के लिए उपस्थित नहीं हो रहे हैं।
1. उपस्थित न होना
यदि कोई व्यक्ति जिसे गवाह या अभियुक्त के रूप में अदालत में उपस्थित होना था, सम्मन या जमानतीय वारंट के बावजूद उपस्थित नहीं होता, तो न्यायालय उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी कर सकता है। यह अदालत के अधिकार क्षेत्र में है कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी संबंधित व्यक्ति अदालत में उपस्थित हों।
2. गिरफ्तारी से बचना
यदि न्यायालय को यह लगता है कि कोई आरोपी व्यक्ति गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद को छिपा रहा है या पुलिस के साथ सहयोग नहीं कर रहा है, तो अदालत उस व्यक्ति की गिरफ्तारी को आसान बनाने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी कर सकती है। यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी व्यक्ति कानून से बचने में सफल न हो।
3. न्याय से बचने की संभावना
कभी-कभी न्यायालय को यह आशंका हो सकती है कि आरोपी व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए गवाहों को प्रभावित कर सकता है, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकता है, या जांच में बाधा डाल सकता है। ऐसे मामलों में भी अदालत गैर-जमानती वारंट जारी कर सकती है ताकि व्यक्ति न्याय से बचने में सफल न हो।
1. अभियुक्तों की उपस्थिति सुनिश्चित करना
गैर-जमानती वारंट जारी करने का सबसे प्रमुख उद्देश्य यह है कि अदालत में अभियुक्त की उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। भारतीय संविधान के तहत प्रत्येक आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है, और यह आवश्यक है कि वह अदालत में उपस्थित हो ताकि वह अपने बचाव का अवसर पा सके।
2. साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ को रोकना
गैर-जमानती वारंट इस उद्देश्य से भी जारी किए जाते हैं कि आरोपी व्यक्ति साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ न करे। यदि किसी मामले में यह आशंका हो कि आरोपी साक्ष्यों को नष्ट या बदल सकता है, तो अदालत गैर-जमानती वारंट जारी करती है ताकि वह न्यायिक प्रक्रिया में शामिल हो सके और साक्ष्यों की अखंडता बनी रहे।
3. गवाहों की सुरक्षा
गवाहों की उपस्थिति भी न्यायिक प्रक्रिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। गैर-जमानती वारंट का एक उद्देश्य यह भी है कि गवाहों को अदालत में गवाही देने के लिए सुनिश्चित किया जा सके। इस तरह से, गवाहों की गवाही की विश्वसनीयता बनी रहती है और न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी होती है।
4. कानून के शासन को कायम रखना
गैर-जमानती वारंट कानून के शासन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक हैं। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया में सभी व्यक्ति, चाहे वह अभियुक्त हों या गवाह, अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार हैं और कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं।
5. जनता का विश्वास बनाए रखना
जब न्यायालय गैर-जमानती वारंट जारी करता है, तो यह समाज में विश्वास बनाए रखने में मदद करता है। यह दर्शाता है कि अपराधी और गवाह कानून से बाहर नहीं हो सकते, और न्यायिक प्रक्रिया को सभी के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
भारत का संविधान अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्रदान करता है। जब गैर-जमानती वारंट जारी किया जाता है, तो यह संविधान के इस अधिकार को सुनिश्चित करने का एक तरीका बनता है।
1. न्यायिक विवेकाधिकार
न्यायालय के पास यह अधिकार होता है कि वह मामले की परिस्थितियों के आधार पर गैर-जमानती वारंट जारी करने का निर्णय ले। यह अदालत की जिम्मेदारी है कि वह उचित आधार पर वारंट जारी करे और यह सुनिश्चित करे कि कोई व्यक्ति न्याय से न भागे।
2. अधिकारों का संतुलन
अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है। यह अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और समाज के हितों के साथ संतुलित होना चाहिए। न्याय के प्रभावी प्रशासन और अपराध की रोकथाम को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है।
गैर-जमानती वारंट पर कई ऐतिहासिक फैसले भी आए हैं जिनसे इस विषय को समझने में मदद मिलती है। उदाहरण के तौर पर, बिहार राज्य बनाम जे.ए.सी. सलदान्हा (1980) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि गैर-जमानती वारंट जारी करते समय अदालत को सभी परिस्थितियों का सही से मूल्यांकन करना चाहिए।
इसी तरह, निरंजन सिंह बनाम प्रभाकर राजाराम खरोटे (2001) मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि गैर-जमानती वारंट केवल तब जारी किया जाए जब अदालत यह मानती हो कि व्यक्ति जानबूझकर अदालत में उपस्थित होने से बच रहा है।
This Post is written by Abhijeet Kumar yadav