KAWAD YATRA: सावन का महीना प्रारंभ हो चुका है। इस महीने में चारों ओर का माहौल शिवमय हो गया है। शिव मंदिर और शिवालयों में भक्तों की भीड़ उमड़ गई है।लोग जलाभिषेक कर भगवान शिव की अराधना करते है।
सावन महीने के दौरान कांवड़ यात्राएं भी शुरू हो जाती है और लाखों की संख्या में भक्त कांवड़ में गंगाजल भरकर शिव के ज्योतिर्लिंगों में जलाभिषेक कर बम-बम भोले का जयकारा करते हुए कांवड़ यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
दरअसल, शिवभक्तों को पूरे साल इस माह का बेसब्री से इंतजार होता है । सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त सच्चे मन और श्रद्धा से शिवलिंग पर जलाभिषेक कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना जाता है। सावन शुरू होते ही भक्तों में गजब का उत्साह और जोश देखने को मिलता है।सावन माह में कावड़ यात्रा का अपना एक खास महत्व है,क्योंकि इसी माह में कावड़िया गंगाजल भरकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में जलाभिषेक करते है।
परन्तु क्या आप जानते है कि कांवड़ यात्रा आसान नहीं होती है। बल्कि इस दौरान कावड़ियों को कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। इसके साथ ही कांवड़ यात्रा भी अलग-अलग तरह की होती है।
यह कावड़ यात्रा का एक प्रकार है ,इस कांवड़ यात्रा में कांवड़िया आराम-आराम से, रुककर या विश्राम करते हुए यात्रा पर जाते हैं। साथ ही कांवड़ियों के विश्राम करने के लिए जगह-जगह पर पंडाल भी बनाए जाते हैं। इस यात्रा के दौरान कावड़ियों को चलने में भी अधिक कठिनाई नहीं होती है।
इस यात्रा के दौरान कांवड़ियों को बिना रुके लगातार चलते रहना पड़ता है। कांवड़ में गंगाजल भरने के साथ ही जलाभिषेक करने तक कांवड़िये कहीं भी न तो रुकते हैं और ना हीं विश्राम करते हैं।
कावड़ियो का एक समूह होता है जो निरंतर दौड़ता रहता है,और यदि भागते-भागते कोई समूह का व्यक्ति थक जाता है तो दूसरा व्यक्ति बिना रुके उसके हाथ से गंगाजल को लेकर दौड़ता रहता है, इसलिए यह यात्रा काफी मुश्किल होती है। भक्त बिना रुके शिवलिंग पर पहुंच सके इसके लिए मंदिरों में भी उनेक लिए विशेष व्यवस्था की जाती है।
इस कावड़ यात्रा में शिवभक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं और उनकी सहायता के लिए एक सहयोगी भी होता है, जोकि उनके साथ-साथ चलता है। इस यात्रा में कावड़ को कहीं पर खड़ा न करने का नियम होता है।
यदि चलते-चलते कोई भक्त थक जाता है तो आराम के लिए वह रुक जाता है तो उस दौरान दूसरा सहयोगी अपने कंधे पर कांवड़ लेकर आगे बढ़ता है।
अन्य कावड़ यात्रा की अपेक्षा इस कावड़ यात्रा को सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि इसमें भक्त को यात्रा पूरी करने में पूरे महीने का समय लग जाता है, क्योंकि इसमें कांवड़िये गंगातट से शिवधाम तक दंडौती या दंडवत करते हुए लेट-लेटकर यात्रा पूरी करते है।इसे दंडवती कावड़ यात्रा भी कहा जाता है।
This post is written by PRIYA TOMAR