Uttrakhand News: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में खासकर सावन माह में प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल पर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। देहरादून जनपद के चकराता ब्लाक से जुड़े ग्राम लाखामंडल में यह प्राचीन शिव मंदिर स्थित है।
लाखामंडल मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बारह मास खुले रहते हैं। सावन की महीने में श्रद्धालु यहां जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं। लाखामंडल में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है।
मंदिर का इतिहास
आपको बता दें कि लाखामंडल शिव मंदिर यमुना के तट से 1372 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है।
इस मंदिर का निर्माण पांचवी से आठवीं सदी में सिंहपुर के राज परिवार से संबंधित राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति चंद्रगुप्त (जो जालंधर के राजा क पुत्र थे) के निधन पर आध्यात्मिक उन्नति के लिए शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
इसके साथ ही लाखामंडल क्षेत्र में एक शिवलिंग का विशाल संग्रह है। जो कि मंदिर की ऊंचाई से 18.5 फीट पर है। छठी शताब्दी में खुदाई के दौरान इसके अवशेष मिले थे।
लाखामंडल शिव मंदिर के संरक्षण का जिम्मा एएसआइ के पास है। यह मंदिर बड़े-बड़े शिलाखंडों से निर्मित है। अभिलेखों में ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा का प्रयोग किया गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी एक लाखामंडल की यात्रा की थी।
युधिष्ठिर ने स्थापित किए सवा लाख शिवलिंग
दरअसल, स्थानीय लोग इस मंदिर को पांडवकालीन समय का बताते हैं। पौराणिक काल से ही पांडवकालीन शिव मंदिर लाखामंडल की विशेष महत्ता है। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। लाखामंडल की सभी प्राचीन लाक्षागृह गुफा में मौजूद है।
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब कौरवों ने पांडवों को जलाने की योजना बनाई थी तो उस वक्त इसी गुफा से पांडव माता कुंती के साथ सकुशल बाहर निकले थे।
महात्म्य लोक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय जौनसार-बावर में गुजारा था। कथानुसार उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने यमुना के तट पर भगवान शिव की तपस्या कर सवा लाख शिवलिंग की स्थापना की थी।
This post is written by PRIYA TOMAR