Uttarakhand News: देवों की भूमि उत्तराखंड अपने मंदिरों, धामों व देवालयों के लिए प्रसिद्ध है। यह वह भूमि है जहां स्वयं महाकाल विराजते है, यहां पतित पावनी गंगा निरंतर अपने भक्तों के लिए कलकल बहते हुए उन्हें दर्शन देती हैं।
हाल ही में कर्णप्रयाग-ऋषिकेश रेल परियोजना के स्टेशनों पर उत्तराखंड की स्थापत्य कला देखने को मिलेगी। अब उत्तराखंड के रेलवे स्टेशन भवनों, पौराणिक मंदिरों व ऐतिहासिक भवनों की तर्ज पर बनाया जाएगा। इस निर्माण कार्य में कम से कम 40 से 50 करोड़ की लागत आएगी।
विशेष शैली से किया जाएगा निर्माण कार्य
आपको बता दें कि स्टेशनों के भवनों की निर्माण शैली पर भी विशेष कार्य किया जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि परियोजना का प्रत्येक स्टेशन भवन उत्तराखंड की स्थापत्य कला के आधार पर निर्मित किया जाएगा,ताकि हर स्टेशन भवन को पौराणिक मंदिरों या ऐतिहासिक भवनों को इस प्रकार से निर्मित किया जाएगा ।
जिससे यहां पहुंचने वाला हर यात्री उत्तराखंड की स्थापत्य कला से परिचित हो सकें। आरवीएनएल ने इसके लिए स्टेशनों के भवन पर बनने वाले डिजाइनों को तैयार कर रहा है। कुछ स्टेशनों के भवन डिजाइन भी तैयार किए जा चुके हैं।
किस -किस स्टेशनों पर बनेंगी डिजाइन
उत्तराखंड की स्थापत्य कला ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का सबसे पहला स्टेशन वीरभद्र है,जहां प्रदेश की स्थापत्य कला का निर्माण किया जाएगा। यह वह स्टेशन है जहां से अलग लाइन कटती है। इस स्टेशन से 6 किमी आगे योगनगरी रेलवे स्टेशन है।
इसके बाद शिवपुरी, ब्यासी, देवप्रयाग, जनासू, मलेथा, श्रीनगर, धारी स्टेशन, तिलनी, घोलतीर, गौचर व सबसे अंत सिवंई (कर्णप्रयाग) स्टेशन है। यह वह स्टेशन है जहां स्थापत्य़ कला का निर्माण आसानी से देखा जा सकता है।
नागरशैली से निर्मित है उत्तराखंड
उत्तराखंड के निर्माण में नागरशैली का विशेष तौर पर प्रयोग किया गया है। इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। नागर शैली के मंदिरों की पहचान इनकी अलग व खास बनी वास्तुकला के आधार पर की जा सकती है।
दरअसल, विकसित नागरशैली के मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप इत्यादि का निर्माण होता हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से जोडते हुए इन भागों का निर्माण किया जाता है।