Sawan Somwar: 22 जुलाई यानी की आज सावन का पहला सोमवार है। यह महीना भगवान शिव की आराधना और पूजा के लिए विशेष फलदायी माना गया है। इस बार सावन माह में 5 सोमवार पड़ रहे हैं।। सावन में शिवलिंग के जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। साथ ही सावन की शुरुआत और समापना दोनों ही सोमवार के दिन होने से बहुत ही दुर्लभ संयोग बना हुआ है।
हिंदू धर्म में सावन के महीने का विशेष महत्व होता है। हिंदू कैलेंडर का यह महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और ऐसी मान्यता है कि सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं जल्दी ही पूरी हो जाती हैं। इसके अलावा शास्त्रों के नियमों का विशेष पालन करते हुए भगवान शिव की अराधना करनी चाहिए।
सावन के महीने में शिवलिंग पर गंगाजल, बेलपत्र, धतूरा, भांग, बेर, शमीपत्र और कनेर के फूल अर्पित करने का भी एक विशेष महत्व है।ऐसा करने से भगवान भोलनाथ जल्द प्रसन्न हो जाते है। वहीं शास्त्रों में कुछ पूजा सामग्री को शिवजी को अर्पित करने की मनाही होती है। ऐसे में इन चीजों का उपयोग भगवान शिव की पूजा आराधना और तपस्या में बिल्कुल भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पवित्र माना गया है और पूजा अनुष्ठान में तुलसी के पत्तों को चढ़ाने की परंपरा है। लेकिन भगवान शिव की पूजा में तुलसी दल का उपयोग वर्जित माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।
भगवान शंकर पर केतकी के फूल को चढ़ाना वर्जित माना गया है, क्योंकि शिवपुराण की कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दिया था, जिससे रुष्ट होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिव को केतकी के फूल अर्पित किया जाना अशुभ माना जाता है।
शिव जी को कभी भी हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए क्योंकि हल्दी को स्त्री से संबंधित माना जाता है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है ऐसे में शिव जी की पूजा में हल्दी का उपयोग करने से पूजा का फल नहीं मिलता है। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।
कुमकुम और सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है।सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और स्वस्थ जीवन की कामना हेतु अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं। लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना अशुभ माना जाता है।
बिल्वपत्र को भगवान शंकर के तीसरे नेत्र का प्रतीक माना जाता है और यह भगवान को अतिप्रिय होता है।यह एक प्रकार का फल होता है किन्तु अभिषेक करने के दौरान बिल्वपत्र का नाम पहले स्थान पर है।हिन्दू धार्मिर मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाना 1 करोड़ कन्यादान करने के फल के बराबर होता है।
भगवान शिव को चंदन अवश्य अर्पित करें क्योंकि शिवपुराण के अनुसार, शिवलिंग में जलाधारा की जगह को अशोक सुंदरी का स्थान कहा गया है. शिवलिंग की इस जगह वाले जल को अपने रोग वाले स्थान पर लगा लें और इसके बाद हाथों को धो लें.अब अशोक सुंदरी पर चंदन लगाएं. ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी बीमारियों से निजात मिलती है।
सावन के महीने में सोमवार के दिन किए गए व्रत मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए किए गए उपाय बेहद फलदायी माने जाते है। सोमवार के दिन जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए क्योंकि ,ऐसा करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
सावन में सोमवार के दिन सूर्य देव को जल अर्पित करके इसके बाद ही दूध में थोड़ा केसर डालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए और साथ ही इस दौरान सच्चे मन से ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें. मान्यता है कि इससे व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता मिलती है>
This post is written/publishd by PRIYA TOMAR and edited by ABHINAV TIWARI
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