नई दिल्ली : स्वतंत्रता दिवस से ठीक पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा EOS-03 उपग्रह का प्रक्षेपण नाकाम रहा। इससे मिशन को बड़ा झटका लगा है। आपको बता दें कि इसरो ने आज सुबह 5.43 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी F -10 (मार्क 2) के जरिए अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट का दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपण किया। जीएसएलवी यानी जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जो अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS -03) को अंतरिक्ष के जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में स्थापित करने वाला था। लेकिन तीसरे स्टेज सेपरेशन के दौरान क्रायोजेनिक इंजन में कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण सैटेलाइट ट्रेजेकटरी से अलग हो गया।
बता दें कि सैटेलाइट को जियो स्टेशनरी ऑर्बिट में स्थापित करना था। इस लॉन्च के लिए उल्टी गिनती बुधवार सुबह 03.43 को शुरू हो गई थी। पूरा मिशन 18 मिनट 36 सेकेंड में पूरा होना था, लेकिन मिशन के लॉन्चिंग के 10 मिनट के भीतर ही मिशन कंट्रोल रूम तनावपूर्ण माहौल देखा गया। जिससे ये लगने लगा कि मिशन के तीसरे भाग में कुछ तकनीकी खराबी देखी गई है।
स्पेसप्लाइट नाऊ के मुताबिक, इसरो EOS-03 उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने में विफल रहा है। इसरो ने पुष्टि की है कि जीएसएलवी एमके. 2 लॉन्च आज क्रायोजेनिक चरण में देखी गई खराबी के कारण विफल रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 के बाद से किसी भारतीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण में यह पहली विफलता है। इससे पहले इसरो के लगातार 14 मिशन सफल रहे।
Watch Live: Launch of EOS-03 onboard GSLV-F10 https://t.co/NE3rVjNtHb
— ISRO (@isro) August 11, 2021
इसरो चीफ के सीवन ने देश को बताया कि मिशन पूरा नहीं हो सका, क्योंकि क्रायोजेनिक इंजन के परफॉर्मेंस में एनोमली ऑब्जर्व की गई है। यानी ऐसी कोई तकनीकी दिक्कत जिसके चलते डाटा इसरो तक नहीं आ पा रहा था और अपने पथ से अलग हो गया।
गैरतलब है कि आज जीएसएलवी लॉन्च का 14वां मिशन था। अब तक 8 पूरी तरह सफल रहे हैं जबकि 4 असफल और 2 आंशिक रूप से सफल रहें हैं। यहीं कारण है कि जीएसएलवी मार्क 1 का सफलता दर 29% जबकि जीएसएलवी मार्क 2 का 86% है।
दरअसल इस सैटेलाइट का नाम GiSAT- 1 है। लेकिन इसका कोड नेम EOS-03 दिया गया। GiSat – 1 का लॉन्च पिछले साल से टलता आ रहा था। इस साल भी 28 मार्च को इसका लॉन्च तय हुआ था। लेकिन टेक्निकल गड़बड़ी की वजह से लॉन्च टाला गया। इसके बाद अप्रैल और मई में भी लॉन्च डेट्स तय हुई थीं। उस समय कोविड-19 संबंधित प्रतिबंधों की वजह से लॉन्चिंग नहीं हो सकी। इसके जरिए भारत दुश्मन की जमीन पर होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखने में और ज्यादा कामयाब होता।
आपको बता दें कि जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में अब भारत के दो उपग्रह इनसैट 3D और इनसैट 3DR है। जिसके बाद आसमान से हर गतिविधि पर नजर रखी जा सकती थी। खास कर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं पर भी नजर रखने में यह सैटेलाइट मिलिट्री इंटेलिजेंस के लिए काफी कारगर साबित होता। यहीं कारण है कि इसे स्पाई सैटेलाइट या आई इन द स्काई कहा गया।
सेना की मदद के अलावा यह सैटेलाइट कृषि, जंगल, मिनरेलॉजी, आपदा से पहले सूचना देना, क्लाउड प्रॉपर्टीज, बर्फ, ग्लेशियर समेत समुद्र की निगरानी करना या किसी भी तरह के फॉरेस्ट के लिए रियल-टाइम मॉनिटरिंग करने में सक्षम था।
साल का पहला मिशन फरवरी में हुआ था
बता दें कि इससे पहले 28 फरवरी को इसरो ने साल के पहला मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था। भारत का रॉकेट 28 फरवरी को श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से पहली बार ब्राजील का उपग्रह लेकर अंतरिक्ष रवाना हो हुआ था। ब्राजील के अमेजोनिया-1 और 18 अन्य उपग्रहों को लेकर भारत के पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान) सी-51 ने श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी। इस अंतरिक्ष यान के शीर्ष पैनल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर उकेरी गई थी।