नई दिल्ली : जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में पीएचडी में दाखिले को लेकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस मामले में आज जेएनयू की एसएफआई यूनिट की ओर से दाखिल की गई पीआईएल (PIL) पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने जेएनयू को नोटिस जारी किया है। जिससे जेएनयू के नए नियम के कारण पीएचडी से वंचित रह रहे छात्रों को पढ़ाई का मौका मिल सकता है।
हाल ही में एसएफआई ने जेएनयू में पीएचडी की 100 फीसदी सीटें सिर्फ जेआरएफ केटेगरी (JRF Category) को देने के फैसले का विरोध जताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की थी। छात्रों ने कहा था कि इस फैसले के बाद नॉन जेआरएफ केटेगरी (Non JRF Category) के छात्र यहां से पीएचडी (PhD) नहीं कर पाएंगे। जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने जेएनयू को नोटिस जारी कर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है।
जनहित याचिका में एसएफआई की ओर से बताया गया कि शैक्षिक सत्र 2021-22 के लिए जेएनयू के सभी सात केंद्रों में पीएचडी की 100 फीसदी सीटों को जेआरएफ केटेगरी के आवेदकों के लिए आवंटित कर दिया गया है और नॉन जेआरएफ केटेगरी के छात्रों के लिए कोई सीट नहीं रखी गई है। जिससे बड़ी संख्या में छात्र पीएचडी से वंचित रह जाएंगे। जबकि अभी तक जेएनयू में यह नियम लागू नहीं था।
पीआईएल दाखिल करने वाले एडवोकेट अशोक अग्रवाल ने बताया कि यह भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का भी हनन है। पिछले साल तक जेएनयू में पीएचडी की सीटों को जेआरएफ केटेगरी से भरने के साथ ही नॉन जेआरएफ छात्रों के लिए प्रवेश परीक्षा की भी व्यवस्था थी लेकिन इस सत्र के लिए जेएनयू ने बिना किसी वैध तरीके को अपनाए अपने ई प्रॉस्पेक्टस में सभी सीटों को जेआरएफ से भरने का फैसला किया है, छात्र इसी मसले को लेकर हाईकोर्ट में पहुंचे हैं।
एडवोकेट ने कहा कि नए फैसले के अनुसार जेएनयू के सात केंद्रों में सेंटर फॉर इंटरनेशनल ट्रेड एंड डेवलेपमेंट, पीएचडी इन ह्यूमन राइट्स स्टडीज, सेंटर फॉर इंग्लिश स्टडीज, सेंटर फॉर इंडियन लैंग्वेजेज (पीएचडी इन हिंदी, पीएचडी इन उर्दू, पीएचडी इन हिंदी ट्रांस्लेशन), सेंटर फॉर स्टडी फॉर लॉ, गवर्नेंस, स्पेशल सेंटर फॉर सिस्टम्स मेडिसिन और सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज शामिल हैं, जहां नॉन जेएआरएफ छात्र पीएचडी नहीं कर सकते। हालांकि अब हाईकोर्ट के नोटिस के बाद इसमें बदलाव संभव है और छात्रों को राहत मिलने की उम्मीद है।