नई दिल्ली : कहा जाता है कि माता-पिता के संबंध के बाद दोस्ती ही एक ऐसा संबंध है, जो बिना किसी स्वार्थ का होता है। दोस्त जहां आपके लिए खुद को मिटाने को तैयार रहते है, वहीं वह आपके लिए किसी से भी लोहा लेने को तैयार होते है। शायद अगर एक पल मौत भी उनके सामने आ जाएं तो वो ये कहने से भी गुरेज ना करें कि हमें भी साथ ले चलों, अकेले हम रहकर क्या करेगे।
ऐसा ही कुछ दोस्ती का मिसाल झारखंड के पलामू में देखने को मिला, जहां पलामू मुख्यालय मेदिनीनगर में कोविड 19 से एक महिला की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार से परिजनों ने दूरी बना ली। मृतक का सिर्फ एक बेटा ही अंतिम संस्कार में पंहुचा था। ऐसे वक्त में मोसैफ, सुहैल, आसिफ राइन, शमशाद उर्फ मुन्नान और जाफर महबूब ने साहस का परिचय देते हुए ना सिर्फ अपने उस हिंदू दोस्त की मदद की बल्कि रीति-रिवाज का पालन करते हुए अंतिम संस्कार भी करवाया।
युवकों ने खुद ही मृत महिला का शव एम्बुलेंस से उतारकर 200 मीटर दूर चिता तक पंहुचाया। उन युवकों के मुताबिक वे अपने दोस्त को तकलीफ में नहीं देख सकते थे, ऐसे में उन्होंने अपनी तरफ से ये मदद का हाथ बढ़ाया।
कोरोना महामारी ने एक बार के लिए रिश्तों में दूरी जरूर ला दी है, लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म माना है, जिन्होंने सभी की सेवा करने की ठानी है। पलामू की ये घटना भी सांप्रदायिक सौहाद्र और भाईचारे का एक खूबसूरत उदाहरण है।