दिल्ली में चल रहा अंतरराष्ट्रीय पुस्तक मेला इस बार एक नई ऊर्जा के साथ परवान चढ़ रहा है। भारत मंडपम में चल रहे इस मेले में तीन दिन में तीन लाख से अधिक पुस्तक प्रेमी पहुंच चुके हैं। मेले में युवाओं का ध्यान विशेष रूप से धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक पुस्तकों की ओर बढ़ा है, जिनमें रामचरितमानस, भगवद्गीता, और अन्य वेद-पुराण प्रमुख हैं।
मेले में सबसे अधिक दर्शक गीता प्रेस और अन्य धार्मिक पुस्तकों के स्टॉल पर जुट रहे हैं। यहां पर रामचरितमानस, भगवद्गीता, और हनुमान चालीसा जैसी धार्मिक पुस्तकों की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली है। गीता प्रेस पर युवा पुस्तक प्रेमी 2 रुपये से लेकर 1600 रुपये तक की किताबें खरीद रहे हैं।
महाकुंभ और धार्मिक साहित्य
महाकुंभ पर लिखी गई पुस्तकों की विशेष मांग देखी जा रही है। ‘भारत में कुंभ’, ‘वॉइस ऑफ गंगा’, और ‘ए विजिट टू कुंभ’ जैसी किताबें बड़ी संख्या में बिक रही हैं। धार्मिक आयोजनों और भारतीय संस्कृति पर आधारित किताबों की बिक्री ने इस मेले को एक धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव बना दिया है।
युवा लेखकों का बढ़ता योगदान
मेले में कई युवा लेखक भी अपने धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को किताबों के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं। यह एक अच्छा मंच है, जहां वे अपने विचारों को साझा कर रहे हैं और सनातन धर्म की सुंदरता को प्रचारित कर रहे हैं।
प्रभात प्रकाशन की विशेष पुस्तकें
प्रभात प्रकाशन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर आधारित ‘डॉटर ऑफ द सोल: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू’ और ‘राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: बदलते भारत का प्रतिबिंब’ जैसी पुस्तकें प्रस्तुत की हैं, जो पाठकों के बीच आकर्षण का केंद्र बन रही हैं।
कॉमिक्स की भी है खासी मांग
दिल्ली बुक फेयर में चाचा चौधरी, नागराज, कप्टन ध्रुव, और चंपक जैसी कॉमिक्स की भी जबरदस्त बिक्री हो रही है। सोशल मीडिया की बढ़ती दुनिया के बावजूद, कॉमिक्स के प्रति युवाओं का यह प्यार पुरानी यादों को ताजा करता है।
विदेशी भाषाओं का बढ़ता रुझान
मेले में विदेशी भाषाओं की किताबों में भी युवाओं का रुझान बढ़ता जा रहा है। जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश और कोरियाई जैसी भाषाओं की किताबें विशेष रूप से बिक रही हैं। जर्मन और स्पेनिश की किताबें 150 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक की कीमत में उपलब्ध हैं। इसके साथ ही हिंदी सीखने के लिए भी व्याकरण की किताबें मेला में बिक रही हैं।
दिल्ली बुक फेयर 2025 एक ऐसा स्थल बन चुका है, जहां धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक पुस्तकों के प्रति रुझान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।