Bel Patra: महादेव कालों के काल है जिनके लिए संसार की सभी वस्तु शून्य के बराबर है। ऐसे महाकाल को यदि आप प्रसन्न करना चाहते है ,तो आप बेल्वपत्र चढ़ा सकते है।
सावन माह में महादेव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है,और यह है कि मान्यता है कि शिव जी बहुत भोले हैं. भक्तों द्वारा सच्चे मन से पूजा करने पर बहुत जल्द ही वह प्रसन्न हो जाते हैं।
भगवान भोलेनाथ की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती हैं जो उन्हें बेहद प्रिय हैं।जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, पुष्प के साथ ही महादेव को बेल पत्र भी बेहद प्रिय है।
बेल्वपत्र का महत्व
बेल्वपत्र को भगवान शंकर के तीसरे नेत्र का प्रतीक माना जाता है और यह भगवान को अतिप्रिय होता है।यह एक प्रकार का फल होता है किन्तु अभिषेक करने के दौरान बिल्वपत्र का नाम पहले स्थान पर है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाना 1 करोड़ कन्यादान करने के फल के बराबर होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुछ लोग इसे भगवान शिव के त्रिशूल का प्रतीक मानते हैं तो वहीं कुछ इसे भगवान शिव के त्रि नेत्र का प्रतीक मानते है। बेल पत्र ब्रम्हा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है।
बेल्वपत्र से जुड़ी पौराणिक कथा
दरअसल, हम बात करें समुद्र मंथन के बारे में तो एक बार देवता और दानव के बीच समुद्र मंथन हुआ था,और मंथन के समय समुद्र में अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीज़ें निकली थी।
समुद्र मंथन के दौरान हलाहल नामक एक विष निकला था और यह विष इतना विषैली था कि सारे संसार को अपने चपेट में ले लेता। सभी देवता उस विष के जानलेवा प्रभाव के आगे कमज़ोर नजर आने लगे। उस विष के प्रभाव को रोकने की शक्ति किसी में नही थी।
उस समय भगवान शिव ने पूरे संसार को बचाने के लिए इस विष का पान कर लिया और इसे अपने कंठ में ही धारण करे रखा. विष के अत्यंत प्रभावशाली होने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया. तभी से उनका नाम भी नील कंठ पड़ गया।
वहीं शिवजी को बेलपत्र खिलाने और जल के असर से उनके शरीर का ताप धीरे-धीरे कम होने लगा था,और तभी से लेकर शिवजी को बेलपत्र और जल चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई।
This post is written by PRIYA TOMAR
़डिस्कलेमर -यह पोस्ट धार्मिक भावनाओं और धार्मिक क्रियाकलापों के आधार पर लिखा गया है RNI NEWS चैनल इस जानकारी की पुष्टि और जिम्मेदारी नहीं लेता है।