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AIIMS Rishikesh News : एम्स का ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल: कैंसर के मरीजों के लिए सुविधाजनक और सुलभ उपचार की नई पहल

कैंसर के इलाज के दौरान मरीजों को अक्सर बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, खासकर बड़े शहरों में स्थित अस्पतालों तक पहुंचने में परेशानी भारी होती है।

By: RNI Hindi Desk 
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AIIMS Rishikesh News : एम्स का ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल: कैंसर के मरीजों के लिए सुविधाजनक और सुलभ उपचार की नई पहल

कैंसर के इलाज के दौरान मरीजों को अक्सर बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, खासकर बड़े शहरों में स्थित अस्पतालों तक पहुंचने में परेशानी भारी होती है। इसी समस्या को हल करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश ने एक नई पहल शुरू की है।

एम्स नेशनल हेल्थ मिशन के ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल के तहत काम कर रहा है, जिससे मरीजों को उनके घर के पास ही इलाज की सुविधा मिल रही है।

कैंसर के मरीजों की बढ़ती संख्या

आखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में पिछले आठ वर्षों में कैंसर के मरीजों की संख्या में पांच गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 में जब एम्स में कैंसर विभाग की शुरुआत हुई थी, तब यहां प्रतिदिन लगभग 40 मरीज ओपीडी में आते थे, लेकिन अब यह संख्या 200 से भी ऊपर पहुंच चुकी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे देश में प्रतिवर्ष 14 से 15 लाख नए कैंसर मरीज सामने आ रहे हैं और इतने बड़े पैमाने पर मरीजों का उपचार करना एक बड़ी चुनौती बन चुका है।

हब एंड स्पोक मॉडल क्या है?

हब एंड स्पोक मॉडल एक संगठनात्मक तरीका है, जिसमें एक बड़ा केंद्र (हब) और कई छोटे उपकेंद्र (स्पोक) जुड़े होते हैं। इस मॉडल के तहत, एम्स जैसे बड़े अस्पताल (हब) में कैंसर का इलाज शुरू किया जाता है और फिर मरीजों की देखभाल के लिए प्रशिक्षित डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ उन मरीजों के नजदीकी अस्पतालों (स्पोक) पर काम करते हैं।

इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह है कि मरीजों को बड़े अस्पतालों में बार-बार जाने की जरूरत न पड़े और वे अपने घर के पास ही इलाज प्राप्त कर सकें।

मरीजों के लिए फायदे

एम्स के विशेषज्ञ डॉ. दीपक सुंद्रियाल के अनुसार, हब एंड स्पोक मॉडल से मरीजों को कई फायदे मिलते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस मॉडल से मरीजों को घर के पास ही उच्च गुणवत्ता वाले कैंसर उपचार की सुविधा मिल रही है।

इससे न केवल मरीजों का समय और पैसा बचता है, बल्कि उन लोगों के लिए यह एक राहत की बात है, जिनके साथ तीमारदार नहीं होते। इसके अलावा, गरीब मरीजों के लिए भी यह मॉडल आर्थिक दृष्टि से मददगार साबित हो सकता है।

अध्ययन से जुड़े तथ्य

एम्स ने एक शोध किया था जिसमें 172 कैंसर मरीजों का अध्ययन किया गया, जिन्होंने उपचार बीच में ही छोड़ दिया था। शोध में पाया गया कि इन मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या उन लोगों की थी जिन्हें सामाजिक सहयोग की कमी, गरीबी, अस्पताल तक पहुंचने में मुश्किल और कीमोथेरेपी से डर जैसी समस्याओं के कारण इलाज बीच में ही छोड़ना पड़ा। इस अध्ययन के परिणाम अमेरिका के जनरल ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित हुए थे।

भविष्य की दिशा

डॉ. सुंद्रियाल के अनुसार, कैंसर के मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हब एंड स्पोक मॉडल की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। भविष्य में इस मॉडल का विस्तार करना बेहद जरूरी है ताकि अधिक से अधिक मरीजों को समय पर और सही उपचार मिल सके।

This Post is written by Abhijeet kumar yadav

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