हिन्दू धर्म में गंगा नदी का विशेष महत्व है। मां गंगा को मोक्ष-दायिनी और जीवनदायिनी के नाम से भी जाना जाता है। गंगा नदी केवल अपने जल और शुद्धता के कारण ही प्रसिद्ध नहीं बल्कि,आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी काफी विशेष हैं। हिन्दू महापुराण एवं वेदों में गंगा की महत्वता का विशिष्ट महत्व है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति को अपने जीवन भर में एक बार गंगा स्नान अवश्य करना चाहिए।
गंगा का जल इतना पवित्र होता है कि किसी भी शुभ एवं धार्मिक कार्यों की शुरुआत में गंगा जल का उपयोग किया जाता है। गंगा जल का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर अंतिम संस्कार की विधि में भी होता है ,तो आइए जानते हैं कि गंगा जल ही इतना पवित्र क्यों होता है।
इस तरह धरती पर आई मां गंगा
हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस धरती पर गंगा को लाने का श्रेय अयोध्या के राजा इच्छवाकु वंश के भागीरथ को जाता है, इसलिए गंगा को भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति दिलाने के लिए धरती पर गंगा को लाने का प्रयास किया था।पुरातन काल के अनुसार एक सगर नाम के राजा हुए है उनकी दो रानियां थी।पहली रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया वहीं दूसरी रानी ने 60 हजार पुत्रों को जन्म दिया।
एक बार राजा सगर के घोडे़ को देवराज इन्द्र ने पकड़ लिया था तो सगर ने अपने पुत्रों को उस अश्वमेध घोडे़ को ढूंढ कर लाने को कहा तो सगर के 60 हजार पुत्र घोड़े की तलाश में कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए सभी ने कपिल मुनि के आश्रम पर हमला कर दिया जिसके कारण कपिल मुनि का ध्यान भंग हो गया उनकी आंखें क्रोध से लाल हो गई थी और आंखों से तेज अग्नि निकलने लगी,जिसमें भस्म होकर सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए।
बहुत समय के बाद जब 60 हजार पुत्रों की खबर नहीं मिली तो सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को उन्हें ढूंढने के लिए भेजा।अंशुमान खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम मे पहुंचे जहां उन्होने ऐसा मंजर देखा कि उनके चाचा कि वहां राख पड़ी हुई है,तभी वहा पर उड़ते हुए पक्षीराज गरुड़ आए और उन्होने कहा कि यदि इन सभी की राख के ऊपर गंगा के जल से तर्पण किया जाए तो यह सब जीवित हो जाएंगे।
तभी अंशुमान ने गंगा को धरती पर लाने के लिए ठान लिया और तप करने के लिए बैठ गए। सगर के जाने के बाद अंशुमान के पुत्र दिलीप ने अपने वंश को आगे बढाया।दिलीप ने एक पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम भागीरथ रखा गया। अंशुमान सगर के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति नही दिला सकें। भागीरथ के बड़े होने पर दिलीप भी राज-पाठ छोड़ कर गंगा को धरती पर लाने के लिए तपस्या करने के लिए वनों में चले गए।
इसके बाद भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने का प्रण लिया तो वह हिमालय पर चले गए। उनकी तपस्या से मां गंगा प्रसन्न हो गई और उन्होने धरती पर अवतरित होने की हामी भर दी तो गंगा का वेग इतनी तेज थी कि उस वेग को केवल भगवान शिव ही संभाल सकते थे। फिर भागीरत ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अंगूठे पर खड़े होकर तपस्या की।
शिव भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो गए और गंगा को धरती पर लाने मे भागीरथ की मदद की। ब्रह्म जी ने कमंडल में जल की कुछ धार भर ली और कुछ धार शिव ने अपनी जटाओं मे ले ली । कुछ दिनों बाद शिव ने अपनी जटाए खोली और इल तरह धीरे-धीरे धरती पर गंगा का अवतरण हुआ।
इसलिए नही होता गंगा जल खराब
1.यदि वैज्ञानिकों की माने तो विभिन्न शोधों से पता चला है कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को मारने का अद्भुत गुण है। गंगा जल में बीमारी पैदा करने वाले ई कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता है।
2.वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफैज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही उन्हें नष्ट कर देते हैं।
3.गंगा का जल हिमालय से होते हुए गुजरता है इसलिए वह अपने साथ विभिन्न प्रकार की औषधियों का असर भी जल मे होता है।
4.वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा जल मे वातावरण से ऑक्सीजन को सोखने की क्षमता अधिक है।
5.शोधकर्ताओं के अनुसार गंगा जल मे प्रचुर मात्रा मे गंधक होता है,जिसके कारण जल अधिक समय तक खराब नही होता है।
THIS POST IS WRITEN BY PRIYA TOMAR