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केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के लिए इतने अहम क्यों हैं? जानिए

आज उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की बीजेपी में अहमियत को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।केशव प्रसाद मौर्य सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मौदान में हैं. यह विधानसभा क्षेत्र कौशांबी में है. कौशांबी इलाहाबाद के पास में ही है और इसे एक पिछड़ा ज़िला माना जाता है।

By RNI Hindi Desk 
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उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की बीजेपी में अहमियत को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। केशव प्रसाद मौर्य सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनावी मौदान में हैं। यह विधानसभा क्षेत्र कौशांबी में है। कौशांबी इलाहाबाद के पास में ही है और इसे एक पिछड़ा ज़िला माना जाता है।

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने जिन 325 सीटों पर जीत दर्ज की थी, उनमें से सिराथू भी एक है। 2017 में इस सीट से बीजेपी के शीतला प्रसाद उर्फ़ पप्पू पटेल चुनाव जीते थे।

स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के बीजेपी छोड़ने के बाद केशव प्रसाद मौर्य की पार्टी में ओबीसी पहचान की प्रासंगिकता को प्राथमिकता के साथ रेखांकित किया जा रहा है। बीजेपी सामाजिक समीकरण को किसी भी हाल में अपने हितों से अलग नहीं होने देना चाहती है। 16 जनवरी को पप्पू पटेल ने सिराथू से अपनी जीत के लिए केशव प्रसाद मौर्य को श्रेय दिया था।

केशव प्रसाद से कहा- बीजेपी का वो मौर्य चेहरा हैं,और वो हिंदुत्व की राजनीति में बीजेपी की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें ग़ैर-यादव ओबीसी समुदाय को साधने की कोशिश होती हैं।

. स्वामी प्रसाद मौर्य की पहचान केशव मौर्य से बिल्कुल अलग रही है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने राजनीतिक जीवन का बड़ा हिस्सा बीएसपी को दिया और वो ख़ुद को अंबेडकरवादी कहते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ब्राह्मणवादी विचारों को लेकर हमलावर रहे हैं।

1969 में जन्मे केशव प्रसाद मौर्य ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद से हिन्दी साहित्य की पढ़ाई की है, केशव प्रसाद मौर्य कहते हैं कि वो बचपन में चाय और अख़बार बेचते थे। बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह केशव प्रसाद मौर्य की ओबीसी पहचान को प्रमुखता से बताती है। केशव प्रसाद मौर्य 2014 से 2017 तक लोकसभा के सांसद रहे. उनके लोकसभा प्रोफ़ाइल में लिखा है।

बचपन में चाय बेचने के दौरान समाज सेवा और शिक्षा की प्रेरणा मिली.शुरुआत के दिनों में केशव प्रसाद मौर्य आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद से जुड़े थे। केशव प्रसाद मौर्य ने आरएसएस में बाल स्वयंसेवक से शुरुआत की और नगर कार्यवाह तक पहुँचे। इसके अलावा वीएचपी में संगठन मंत्री रहे. मौर्य को बीजेपी की कमान सौंपने के पीछे बीजेपी का एजेंडा ग़ैर-यादव ओबीसी वोटरों को आकर्षित करना था।

राजनीतिक करियर : 

केशव प्रसाद मौर्य की जाति पूरे उत्तर प्रदेश में है। इस जाति की पहचान अलग-अलग नामों से है। जैसे- मौर्य, मोराओ, कुशवाहा, शाक्य, कोइरी, काछी और सैनी. ये सभी मिलाकर उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 8.5 फ़ीसदी हैं। पारंपरिक रूप से इनका पेशा खेती-किसानी रहा है।

मौर्य के राजनीतिक करियर की शुरुआत इलाहाबाद पश्चिम से लगातार दो हार से हुई थी. लेकिन 2012 में सिराथू में इन्हें जीत मिली थी। इसके बाद 2014 में मौर्य को बीजेपी ने फूलपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया। मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार मौर्य को फूलपुर में 52 फ़ीसदी मत मिले थे. फूलपुर नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता था। यहां से नेहरू सांसद बने थे. यह पहली बार था, जब बीजेपी को यहाँ जीत मिली थी।

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी बिना कोई सीएम चेहरा के मैदान में उतरी थी। केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों को लगता था कि बीजेपी को जीत मिलेगी तो मौर्य मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया।

 

जातीय समीकरण को साधने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को दिनेश शर्मा के साथ उप-मुख्यमंत्री बनाया गया. दिनेश शर्मा ब्राह्मण चेहरा हैं और वो तब लखनऊ के मेयर थे. समाजवादी पार्टी ने बीजेपी पर सवाल उठाना शुरू कर दिया कि बीजेपी केवल पिछड़ी जातियों का इस्तेमाल सत्ता हासिल करने के लिए करती है.

 

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