हरियाली तीज के पर्व का मथुरा-वृन्दावन में विशेष महत्त्व है। आज के दिन यहाँ के सभी प्रमुख मंदिरों में विराजमान ठाकुरजी को झूला झुलाने की परंपरा है।
बताया जाता है कि इस दिन पहली बार वृन्दावन की पवित्र भूमि पर कृष्ण ने राधा संग झूला झूलने का आनंद लिया था, तभी से लेकर आज तक मथुरा-वृन्दावन के सभी प्रमुख मंदिरों में प्राचीन परंपरा का पालन हो रहा है।
वैसे तो हरियाली तीज पर वृन्दावन के सभी प्रमुख मंदिरों में झूलनोत्सव के अंतर्गत झूले सजाये जाते हैं। परन्तु ब्रज के प्रसिद्ध हरियाली तीज पर्व की विशेष धूम जग प्रसिद्ध ठाकुर बाँकेबिहारी मंदिर में रहती है।
जहां प्रातःकाल ठाकुर बांकेबिहारी लाल को मंदिर के गर्भ-गृह से बाहर निकालकर करीब 32 फुट चौड़े व 12 फुट ऊंचे विशाल स्वर्ण-रजत के हिंडोले में विराजमान कराया जाता है और उनके दोनों ओर खड़ीं सखियां प्रतीकात्मक रूप में उन्हें झूला झुलाती हैं।
हरियाली तीज के मौके पर हरे रंग के महत्त्व को देखते हुए ठाकुरजी और सखियों को हरे रंग की विशेष पोशाक धारण कराई जाती है। साथ ही ठाकुरजी को भोग भी इस पर्व की विशेष मिठाई घेवर-फैनी अर्पित किया जाता है।
मंदिर के पीछे ठाकुर जी की थकान मिटाने के लिए सुखसेज सजाई जाती है। ठाकुरजी की इस अनुपम छवि के दर्शनो के लिए प्रातः से देर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रहती है। परंतु इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण जग प्रसिद्ध ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में हरियाली तीज पर्व सादगी के साथ मनाया गया।
जहां प्राचीन परंपरा के अनुसार मंदिर के अंदर ठाकुरजी को स्वर्ण रजत हिंडोले में विराजमान करने सहित सभी सेवा कार्य पूर्ण विधिविधान से हुए, लेकिन दर्शनों के लिए मंदिर के सेवायतों को ही प्रवेश मिल सका। जबकि आम श्रद्धालु भक्तों को हिंडोले में विराजमान अपने आराध्य के दर्शन किए बिना बाहर से ही बैरंग लौटना पड़ा।
जिससे वे मायूस भी नजर आए। वहीं इस पर्व के मौके पर उमड़ने वाली भक्तों की भीड़ को मंदिर में प्रवेश से रोकने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा पुख्ता इंतजाम किए गए।