{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
मानव जीवन का सार्थक बिंदु है एक दूसरे के साथ समान भाव से जीवन जीते हुए आत्मा का दर्शन करना जिसे हम जानते हुए भी स्वीकार नहीं करते है।
जैसे हम अपने कर्म को नहीं समझने के कारण इसका बुरा फल भोगते है ठीक उसी प्रकार आत्मा की समझ नहीं होने के कारण ही शरीर के द्वारा सामाजिक मर्यादा का हनन हो जाता है।
जब तक मनुष्य ईश्वर से जुड़कर आत्मा के मर्म को नहीं समझेगा तब तक उसके मन का अन्धेरा नहीं जा सकता। वो कितना ही अच्छी नेत्र ज्योति वाला हो उसकी आंख वो उजाला नहीं देख सकती जो मन की आंख देखती है।
ऊपर वाले ने मनुष्य जीवन बड़ा विस्तृत बनाया है। आपका मन जहां चाहे वहां उड़ान भर सकता है। जीवन को सार्थक बनाने की हर सामग्री यहां उपलब्ध है।
आत्मा का दर्शन करने के लिए अपने मन रूपी घोड़े पे लगाम लगाना बड़ा ज़रूरी है। इन्द्रियों को वश में रखना बेहद ज़रूरी है।
जब इंसान शरीर सुख में ही फंस जाता है तो वो कभी भी आत्मा का प्रकाश को नहीं देख पाता है और बस भटकता रहता है।
देखा जाए तो हम पुरे तरीके से सक्षम है उस स्वरुप के दर्शन करने में बस कमी है तो संकल्प की। अगर जीव चाहे तो तो क्या नहीं कर सकता है।