नई दिल्ली : मजबूर हैं हम, क्योंकि मजदूर हैं हम। 1 मई यानी की मजदूर दिवस, जो सिर्फ किताबों और सरकारी कार्यालयों तक ही सीमित है। लेकिन इसके लिए आंदोलन किये थे, कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों ने। क्योंकि जिस तरह आज भी मजदूरों का शोषण किया जा रहा है, उसी प्रकार आज से करीब 135 साल पहले भी मजदूरों से बेतरतीब काम लिया जाता था। काम करने की कोई समयसीमा नहीं थीं, पारिश्रमिक कम थे, सुविधा के नाम पर फूटपाथ पर सोने को मजबूर, अगर एक दिन काम ना मिलें तो पानी पीकर सोने को मजबूर। काम में लेट होने पर दिहाड़ी काटना, कोई स्वास्थ सुविधा नहीं, दिहाड़ी का निर्धारण नहीं और उनका शोषण करना। पूंजीपतियों, सरकारों, साहूकारों द्वारा लगातार शोषित होने के बाद एक दिन सभी मजदूरों ने इस काले कानून का विरोध करने का सोचा और 1 मई 1886 को अमेरिका में आंदोलन हुई।
इस आंदोलन के दौरान अमेरिका में मजदूर काम करने के लिए 8 घंटे का समय निर्धारित किए जाने को लेकर आंदोलन पर चले गए थे। 1 मई, 1886 के दिन मजदूर लोग रोजाना 15-15 घंटे काम कराए जाने और शोषण के खिलाफ पूरे अमेरिका में सड़कों पर उतर आए थे। इस आंदोलन को दबाने के लिए कुछ मजदूरों पर पुलिस ने गोली चला दी। जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। इसी के साथ भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में काम के लिए 8 घंटे निर्धारित करने की नींव पड़ी।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
वहीं भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। यही वह मौका था जब पहली बार लाल रंग झंडा मजदूर दिवस के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। यह भारत में मजदूर आंदोलन की एक शुरुआत थी जिसका नेतृत्व वामपंथी व सोशलिस्ट पार्टियां कर रही थीं। दुनियाभर में मजदूर संगठित होकर अपने साथ हो रहे अत्याचारों व शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
आज ही के दिन दुनिया के मजदूरों के अनिश्चित काम के घंटों को 8 घंटे में तब्दील किया गया था। मजदूर वर्ग इस दिन पर बड़ी-बड़ी रैलियों व कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन (ILO) द्वारा इस दिन सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। कई देशों में मजदूरों के लिए कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएं की जाती है। टीवी, अखबार, और रेडियो जैसे प्रसार माध्यमों द्वारा मजदूर जागृति के लिए कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। आपको बता दें कि भारत में लेबर डे को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस, मई दिवस, कामगार दिन, इंटरनेशनल वर्कर डे, वर्कर डे भी कहा जाता है।
वर्तमान में भारत में मजदूर दिवस का अस्तित्व
अगर हम वर्तमान में भारत में मजदूर दिवस की बात करें तो ये तो मजदूरों के लिए अन्याय होगा। क्योंकि यहां कहने के लिए मजदूर दिवस है, जो सिर्फ सरकारी कार्यालयों तक ही सीमित है। जबकि इस दिवस के दिन भी बड़ी-बड़ी कंपनियां, छोटे कल-कारखाने खुले हुए जहां मजदूर अपने खून पसीना एक कर कमाकर अपना और अपने परिवार को पेट पालने रहे है। जिसे लेकर उन्हें आज भी 10 से 12 घंटे काम करने पड़ते है। पारिश्रमिक के नाम एक छोटी सी राशि जो सरकार द्वारा तय किये गये मानकों से कई गुणा कम होता है। लेकिन क्या करें साहेब मजबूरी हैं, अगर काम नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा, बच्चा लोग कैसे पढ़ेगा।
सरकार तो काम ही कानून बनाने का, कहने का लेकिन वो लागू हो या ना हो ये सरकार का काम नहीं है। आपको बता दें कि इसी तरह का व्यवस्था आईटी कंपनी, स्पोर्ट लाइन, मोबाइल, पार्ट्स, मीडिया जैसे आदि कई क्षेत्रों में है, जहां लगातार मजदूरों का शोषण हो रहा है। और सरकार ये सब देखते हुए भी मौन साधे हुए है। क्योंकि कुछ लोगों का ऐसा कहना है कि उनकी भी सरकार पूंजीपतियों द्वारा ही चलती है।
बता दें कि 1 मई को ही महाराष्ट्र और गुजरात का स्थापना दिवस भी मनाया जाता है। भारत की आजादी के समय यह दोनों राज्य बॉम्बे प्रदेश का हिस्सा थे। महाराष्ट्र में इस दिन को महाराष्ट्र दिवस, जबकि गुजरात में इसे गुजरात दिवस के नाम से भी जाना जाता है।