रिपोर्ट: सत्यम दुबे
लखनऊ: पूर्वांचल के बाहुबली डॉन मुख्तार अंसारी को यूपी की योगी सरकार यूपी लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। वहीं पंजाब की अमरिंदर सरकार भी अंसारी को यूपी न भेजने का हर पैंतरा आजमा रही है। मुख्तार अंसारी पर हत्या, अपहरण और रंगदारी के कई मामले दर्ज हैं। अंसारी उस वक्त सबसे ज्यादा चर्चा में आया था, जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की गई थी।
इस मामले में पूर्व डीजीपी बृजलाल ने एक चैनल को पूरी कहानी बताई, आइये जानते क्या है वो मामला। आपको बता दें कि मुख्तार अंसारी उस दौर में कृष्णानंद राय को मारना चाहता था। लेकिन उसके सामने परेशानी ये थी कि कृष्णानंद राय की गाड़ी बुलेट प्रूफ थी। इस गाड़ी को भेदने के लिए सिर्फ एलएमजी (LMG) ही सक्षम हथियार माना जाता था। यही कारण था कि मुख्तार एलएमजी (लाइट मशीन गन) खरीदना चाहता था।
उन्होंने बताया कि वक्त था साल 2004 का उस वक्त वो डीजीपी मुख्यालय में आईजी लॉ एंड आर्डर के पद पर तैनात थे। उन्होने कहा कि उसी साल 25 और 26 जनवरी की रात शैलेंद्र सिंह ने मुन्नर और बाबूलाल यादव को गिरफ्तार किया था। इसके बाद डीजीपी मुख्यालय में तैनात एडीजी रैंक के एक अधिकारी ने शैलेंद्र सिंह को इतना प्रताड़ित किया कि 11 फरवरी 2004 को शैलेंद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया।
आपको बता दें कि उस वक्त सरकार ने इस्तीफा नामंजूर कर दिया। जिसके बाद उन्होने दोबारा 20 फरवरी 2004 को दोबारा इस्तीफा भेजा, इस बार सरकार ने 10 मार्च 2004 को शैलेंद्र सिंह का इस्तीफा स्वीकार कर लिया था। इस्तीफा के बाद जून के महीने में शैलेंद्र सिंह छात्रों की कुछ समस्याओं को लेकर जिलाधिकारी से मिलने आये। जिलाधिकारी उन लोगों से बिना मिले चले गए। जिसके बाद शैलेंद्र सिंह छात्रों के साथ धरने पर बैठ गए। उनके धरना पर बैठने के बाद उनके खिलाफ तमाम गंभीर धाराओं में FIR दर्ज करवाई गई। शैलेंद्र सिंह पर गैंगस्टर तक लगाने की कोशिश की गई थी।
पूर्व डीजीपी बृजलाल ने आगे बताया कि शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाने के संबंध में अनुमति मांगी थी। जब उसकी फाइल सीएम ऑफिस पहुंची तो सीएम ने मुन्नर यादव और बाबूलाल पर तो अभियोजन की स्वीकृति दी, लेकिन मुख्तार अंसारी पर अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिली। इस मामले में सिर्फ आर्म्स एक्ट का मुकदमा बचा तो मुख्तार ने कहना शुरू कर दिया कि वह एलएमजी पकड़वाने के लिए बात कर रहा था।
उस वक्त गाजीपुर जेल की बैरक नंबर 10 को मुख्तार अंसारी ने घर बना लिया था। वहां मछली पालन होता था। डीएम बैडमिंटन खेलने जाते थे। इसी बीच कृष्णानंद राय की हत्या से ठीक एक महीने पहले एक साजिश के तहत मुख्तार ने अपना ट्रांसफर फतेहगढ़ जेल में करा लिया था।
उन्होने आगे बताया कि कृष्णानंद राय की हत्या से पहले मुख्तार अंसारी के घर पर तमाम अपराधी इकट्ठा थे। इसकी जानकारी थानेदार से लेकर जिले के एसपी और बड़े अधिकारियों तक थी। लेकिन किसी ने छापा मारने की हिम्मत नहीं की। मुख्तार अंसारी ने बाहुबल के दम पर गवाहों को तोड़ा और बरी हो गया।
वक्त था नवंबर का साल था 2005 बीजोपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई। कृष्णानंद की हत्या के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में भूचाल सा आ गया था। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और कल्याण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं ने सीबीआई जांच की मांग की थी
हत्या कांड के बाद कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय ने जो एफआईआर दर्ज कराई थी, उसमें मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, मुन्ना बजरंगी, अताउर रहमान, संजीव महेश्वरी, फिरदौस, राकेश पाण्डेय आदि का नाम शामिल था।
क्यों हुई कृष्णानंद रायकी हत्या?
एक वक्त ऐसा था जब ब्रजेश सिंह मुख़्तार के सामने कमजोर पड़ने लगा तो उसने सियासी मदद की तलाश शुरू की। ऐसे में उसे यह मदद कहा जाता है कि कृष्णानंद राय से मिली। उस वक्त मुख़्तार की तूती बोल रही थी। इसी बीच यूपी के गाजीपुर जिले की मोहम्मदाबाद सीट से 2002 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की टिकट पर कृष्णानंद राय ने चुनाव जीता था।
इसके बाद कृष्णानंद राय की अदावत अंसारी से काफी बढ़ गई। उनके कद बढ़ता देख अंसारी को ये बात हजम नहीं हुई। धीरे-धीरे दोनों में तकरार बढ़ने लगी और क्षेत्र में बालू गिट्टी के निकलने वाले ठेके जंग का कारण बनने लगे।
मुख़्तार और कृष्णानंद दोनों ही राजनीति से जुड़े थे। इसके साथ ही दोनो संवैधानिक पद पर भी थे। इस स्थिति में वो खुद अपराध करने से परहेज करते थे। इधर कृष्णानंद ने ब्रजेश सिंह को शरण दी तो मुख़्तार ने मुन्ना बजरंगी को अपना दाहिना हाथ बना कर खड़ा किया। उस दौर में माना जा रहा था कि बढ़ रहें वर्चस्व की लड़ाई में कोई बड़ी घटना हो सकती थी। लेकिन किसी को ये भरोसा नहीं था कि वह घटना कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ी होगी।
नवंबर 2005 में पूर्वांचल के दो बाहुबलियों की जंग में वक्त था निर्णय का कृष्णानंद राय और उनके छह साथी एक समारोह से लौट रहे थे। रास्ते में हथियार बंद लोगों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर हमला कर दिया। हमलावरों के पास एके-47 और कई ऑटोमैटिक हथियार थे, जिससे राय और उनके कुल छह साथियों की हत्या कर दी गई।
कृष्णानंद राय की हत्या इतनी निर्ममता से की गई थी कि उनपर लगभग 500 गोलियां चलाई गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट की मानें तो उन 6 लोगों के शरीर से 65 गोलियां निकाली गई थी। कहा जाता है कि उस वक्त पूर्वांचल सुलग उठा था।