{ श्री अचल सागर जी महाराज की कलम से }
कोरोना वायरस की मार से दुनिया बेहाल है और ये देश भी इस वायरस से लड़ाई लड़ रहा है।
इस लड़ाई को देशवासी पूरी लगन और मेहनत से साथ लड़ रहे है लेकिन कही ना कही हमसे कुछ गलतियां हुई है।
पहली गलती हमसे तब हुई जब हमने शराब के ठेके खोल दिए। एक बड़ी भीड़ उमड़ पड़ी ,शराब पीने वाले को किसी और की चिंता नहीं होती है।
उसे तो बस इस चीज़ से मतलब होता है की शराब मिल जाए। ऐसे में क्या वो कोरोना से पीड़ित नहीं हुए होंगे ?
दूसरी गलती मजदूरों को घर भेजना, अगर घर भेजना था तो शुरू में भेजना चाहिए थे। जब कोरोना का संक्रमण चरम पर है उस समय में मजदूरों को घर भेजना बहुत बड़ी भूल है।
आज यूपी जैसे राज्यों में आधे से अधिक केस सिर्फ इन मजदूरों के आ रहे है।

सरकार को एक तय समय तक इन मजदूरों का डेटाबेस बनाकर रहने और खाने पीने का इंतज़ाम करना था। इससे ना ये पीड़ित होते ना राज्यों में संकट होता। लेकिन राज्यों ने ऐसा करने के बजाय इनको यूपी बिहार भेजना शुरू कर दिया।
आखिरी गलती हमसे ये हुई है कि सरकार ने अचानक सब कुछ खोल दिया है। सिर्फ रेड जोन को छोड़कर एक जून से सब कुछ शुरू कर दिया है।
इस वक़्त देश में दो लाख के करीब केस हो गए है। ऐसे में क्या ढील देना लाजमी है ? बस और ट्रैन में कौन नियम का पालन करेगा ?
अगर एक दो दिन ऑफिस में नियम का पालन किया भी तो कुछ दिनों बाद वो अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएगा। लोगों से हाथ मिलाएगा। साथ खाना खायेगा।
आप क्या एक एक बस चेक करेंगे ? एक एक ऑफिस चेक करेंगे ? ऐसा संभव ही नहीं है। शराब के ठेके खोलने के बाद जो केस बढ़े उससे भी अधिक केस अब बढ़ने वाले है।
क्यूंकि अब लोगों के अंदर कोई खौफ नहीं होगा और वो एक दूसरे को बीमार करते रहेंगे।