164 साल पुराने सामाजिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम में कुरआन के साथ गीता रामायण और वेदों की रचनाएं भी पढ़ाई जा रही है।
जनपद सहरानपुर के देवबंद में 164 साल पुराना एशिया का सबसे बड़ा इस्लामिक शिक्षण केंद्र दारुल उलूम कुरआन, हदीस की शिक्षा और अपने फतवे के लिए पहचाना जाता है !
आमतौर पर यहां की लाइब्रेरी में दाढ़ी और टोपी वाले स्टूडेंट कुरान की आयतें, वेदों की रचनाएं और गीता रामायण के श्लोक का उच्चारण करते मिल जाएंगे।
दरअसल यह संस्थान छात्रों को गीता, रामायण, वेद, बाइबिल, गुरुग्रंथ और अन्य धर्मों के ग्रंथों की शिक्षा भी देता है।
दारुल उलूम के बारे में इस जानकारी से अधिकांश लोगों को आश्चर्य हो सकता है, लेकिन हर साल यहां से पास होकर ऐसे स्पेशल कोर्स में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद करीब 300 है ! इनमें 50 सीटें हिंदू धर्म के अध्ययन के लिए होती है।
दरअसल 24 साल पहले देवबंद की कार्यकारिणी समिति ने यह स्पेशल कोर्स चलाने का फैसला किया था, इसके तहत हिंदू धर्म के अलावा ईसाई, यहूदी, सिख और पारसी सहित अन्य धर्म भी पढ़ाए जाते हैं!
स्पेशल कोर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दर्शन को समझने की पर्याप्त परिपक्वता छात्रों में विकसित हो सके यह कोर्स 2 से 4 साल तक के होते हैं।
दारुल उलूम से ही पासआउट देश के प्रमुख आलिम मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी इस स्पेशल कोर्स के विजिटिंग प्रोफेसर है, जिन्होंने खुद भी प्रमुख 12 उपनिषदों, चार वेदों गीता और रामायण का अध्ययन किया है उन्होंने ही यहां हिंदू धर्म और दर्शनशास्त्र का सिलेबस बनाया है!
दारुल उलूम के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी मुताबिक बताया कि दारुल उलूम देवबंद उलूम इस्लामिया का एक मारूफी दारा है इसमें सिर्फ इस्लामी उलूम ही नहीं बल्कि दूसरे उलूम से भी हम अपने बच्चों को रोशनाथ ओर रुहगा कराते है।
10th क्लास के जरिए हम अपने बच्चों को गीता, रामायण व वेदों के श्लोकों का उच्चारण कराते है हिन्दू फलसफे के बारे में बताते है! इससे सामाजिक अहंगी भी पैदा होती है और फासले भी कम होते है! यहां छात्र मौलवी की डिग्री के बाद स्पेशल कोर्स चुन सकते हैं।
इसके तहत हिंदू धर्म के अलावा ईसाई, यहूदी, सिख और पारसी सहित अन्य धर्म भी पढ़ाए जाते हैं। स्पेशल कोर्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दर्शन को समझने की पर्याप्त परिपक्वता छात्रों में विकसित हो सके। ये कोर्स दो से चार साल तक के होते हैं।
युवा मौलाना इश्तियाक कासमी ‘चतुर्वेदी’ बताते हैं कि उन्होंने मौलवियत की डिग्री के बाद चारों वेदों, गीता और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया।
संस्कृत के विद्वान हैं इसी नाते अपने नाम के साथ ‘चतुर्वेदी’ लिखते हैं। आजकल वह गीता और क़ुरान के दर्शन पर अपना शोध कर रहे हैं।
वे बताते हैं कि धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने के बाद मैंने यह सीखा कि सभी शांति, सद्भाव को लेकर अल्लाह, ईश्वर और परम ब्रह्म के संदेश देते हैं।
एक अन्य छात्र मौलाना अब्दुल मलिक कासमी का कहना है,‘इन धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना आंख खोलने वाला अनुभव है। इनके अध्ययन ने मेरा दृष्टिकोण बदल दिया और मुझे दोनों धर्मों की शिक्षाओं और दर्शन में अद्भुत समानता मिली।’
यहां लाइब्रेरी में दो लाख पुस्तकें और 1,500 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। इसमें कई 600-800 साल पुरानी हैं।
इसके इंचार्ज शफीक यहां रखे ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण, तुलसीदास की रामचरितमानस, मनुस्मृति, विष्णु स्मृति का संग्रह दिखाते हैं। कहते हैं इन्हें हमने पूरी श्रद्धा के साथ रखा है।