हमारे देश में मधुमक्खियों से शहद निकालकर मुद्दत से कमाई हो रही है। मधुमक्खी पालन का पुराना इतिहास है। प्राचीन काल में शहद हिंदुस्तान की गुफाओं, वनों के निवासियों पहला मीठा आहार और औषधि रही है। प्रागैतिहासिक मानव मधुमक्खियों के छत्ते प्रकृति का सबसे मीठा उपहार मानता था।
परम्परागत ग्रामोद्योगों के लिए जब खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग की स्थापना हुई तो वर्ष 1980 के दशक में पहली बार एक मिलियन मधुमक्खी छत्ते उत्पादित किए गए। आज विभिन्न स्तरों पर देश में शहद उत्पादन 10,000 टन से ज्यादा होने लगा है। बड़े पैमाने पर उन्नत खेती करने वाले किसान भी एपिस सेरेना, यूरोपिय मधुमक्खी, एपिस मेलिफेरा एवं देशज प्रजातियों की मधुमक्खियों के पालन से एक वर्ष में 15 से 20 लाख रुपए तक की कमाई कर ले रहे हैं।
मधु (शहद) का उपयोग पूजा से लेकर सौंदर्य प्रसाधन और पौष्टिकता के लिए किया जाता है। यह खांसी व दमा में उपयोगी होता है। यह एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है। इसमें विटामिन ए, बी2, बी5, बी6 के साथ ग्लूकोज, फ्रक्टोज, पोटैशियम, कैल्सियम, सल्फर, फास्फेट, जिंक व आयरन आदि खनिज तत्व होते हैं।
यह आंखों की रोशनी तेज करने व श्वास संबंधी बीमारी दूर करने में उपयोगी है। इससे कई प्रकार की दवा, क्रीम, ऑयल आदि बनते हैं। मोटापा कम करने, घाव ठीक करने और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है।
इस व्यवसाय के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं, ये एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया हैं और इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मधुमक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है।
एक बक्से में पांच से सात हजार मधुमक्खियां रहती हैं। इसमें एक रानी मधुमक्खी और कुछ ड्रोन (नर मधुमक्खी) व वर्कर मधुमक्खी रहती हैं। फूल के समय आम तौर पर जनवरी-फरवरी से अप्रैल-मई तक खेतों ओर बगीचों में बक्से रखे जाते हैं।
तीन किमी की रेंज से मधुमक्खियां फूलों से रस लाकर बक्से के छत्ते में भरती हैं। एक दिन में रानी मधुमक्खी 1500 से 2000 अंडे देती है। वर्कर मधुमक्खियां अपने पंख से लाए रस को झेलते हुए पानी सुखाते हैं और मधु तैयार होता है। प्रोसेसिंग यूनिट में मशीनों से छत्ते से मधु निकाल कर पैक किया जाता है।
शहद और मधुमक्खीपालन प्रक्रिया के दौरान पैदा होने वाले अन्य उत्पादों जैसे परागकण या पोलन, रॉयल जैली, मोम, प्रोपोलिस, डंक इत्यादि के निर्यात से देश को साल में लगभग 1,200 करोड़ रुपये की विदेशीमुद्रा की आय होती है, इसे और बढ़ाया जा सकता है. वर्ष 2018-19 में एक लाख 15 हजार टन शहद का उत्पादन हुआ जिसमें से करीब 62 हजार टन का निर्यात किया गया.