नई दिल्ली : गजब की भैय्या है ये कुर्सी, जिसे मिल जाती है उसके सिर चढ़कर नाचने लागती है और जिसे नहीं मिलती वो कुर्सी की आश में लगे रहते है। भले ही उन्हें जनता ने अपनी सेवा और काम के लिए चुना हो, लेकिन यहां तो कुर्सी की खेल ही निराला है। जब तक न मिलें तो आपका सेवक, और जब मिल जाएं तो आप उसके सेवक, समझ गये न।
ऐसा ही एक उदाहरण बिहार के हाजीपुर में देखने को मिला। जहां कांग्रेस विधायक प्रतिमा कुमारी अस्पताल आईं तो थी मरीजों का हाल-चाल जानने। लेकिन उन्हें मरीजों से ज्यादा अपनी कुर्सी की पड़ी थीं। क्योंकि आदत तो जो हो गई थी कुर्सी पर बैठने की। लेकिन उन्हें कोई साधारण कुर्सी नहीं चाहिए था, उन्हें चाहिए था, पावर वाली कुर्सी, यानी की डॉक्टर की। जिसपर डॉक्टर बैठकर मरीजों को देखते है। बस क्या था विधायक जी सीधे अस्पताल के प्रभारी डॉक्टर के चेंबर में पहुंच गईं और प्रभारी को कुर्सी छोड़ने के लिए कहा। तो वहीं डॉक्टर साहब ने सामने वाली कुर्सी ऑफर की, जिसपर बैठने से उन्होंने इनकार कर दिया और ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर को प्रोटोकॉल समझाने लगीं।
वहीं अस्पताल में तैनात डॉक्टर ने भी विधायक साहिबा को अपनी कुर्सी देने से साफ मना कर दिया और सामने रखी कुर्सी पर ही बैठने के लिए कह दिया। कुर्सी का यह खेल देखकर वहां मौजूद नागरिक काफी हैरान थें, लेकिन ये तो कुर्सी है भैय्या। जिसकी आदत जल्दी नहीं छूटती। इसलिए अधिकतर विधायक भी अपने क्षेत्र से नदारद रहते है और इस कुर्सी का आनंद लेते है।
हालांकि डॉक्टर के इनकार से बौखलाई कांग्रेस की विधायक डॉक्टर के बगल की कुर्सी पर बैठ गईं और मरीजों के हाल, स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर सवाल-जबाब करने लगीं। वहीं जब अस्पताल में कुर्सी को लेकर हुए इस झगड़े को लेकर विधायक प्रतिमा कुमारी से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि डॉक्टर को नहीं पता है। डॉक्टर ने अपनी कुर्सी न देकर उनकी बेइज्जती की है और प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा कि विधायक इलाके के ऑल इन ऑल होते हैं। ये चीज यहां के अधिकारियों को नहीं पता है.। इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश सरकार पर भी हमला बोला और कहा कि ये तो विपक्षी को प्रतिनिधि मानने के लिए तैयार ही नहीं हुए।
खैर बात जो भी हो, लेकिन अब इस कुर्सी के चक्कर में तो बिहार की जनता पिस रही है और पिसे भी क्यों ना, क्योंकि इन्हें तो चुना हमने और आपने है। जय हो कुर्सी महाराज की।