नई दिल्ली : साल दर साल गुजरते जा रहे है, लेकिन लोग अपने लापरवाह आदतों से बाज़ नहीं आ रहे है। लोगों के इन्ही लापरवाह आदतों का नतीजा है कि जिस बोरवेल को हम अपनी सुविधा के लिए बनवाते है, वह अब मौत का कुआं बन चुका है। क्योंकि अब यह बोरवेल जान लेती है। वो भी सिर्फ बड़े लोगों का ही नहीं, बल्कि बच्चों का भी।
एक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश के आगरा के धरियाई गांव से सामने आया है, जहां सोमवार सुबह छोटेलाल का तीन साल का बेटा शिवा घर के बाहर खेल रहा था। खेलते-खेलते शिवा घर के पास ही बने बोरवेल में जा गिरा। जो तकरीबन 100 फुट से भी अधिक गहरा था। बच्चे के बोरवेल में गिरने की जानकारी मिलते ही ग्रामीण इकट्ठे हो गए। शुरुआत में ग्रामीणों ने अपने स्तर पर ही बच्चे को बचाने की कोशिश की। उसे रस्सी डालकर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन बोरवेल का आकार संकरा होने के कारण बच्चे को निकाला नहीं जा सका।
इस हादसे से पूरे गांव में हड़कंप मच गया । हालांकि इस घटना की खबर मिलने के बाद मौके पर पहुंची पुलिस ने NDRF (राष्ट्रीय आपदा मोचन बल) को सूचित किया। सूचना के बाद के मौके पर पहुंची एनडीआरएफ ने नौ घंटे से अधिक समय तक चले बचाव अभियान के दौरान सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। इसे लेकर पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी।
नियमों का उल्लंघन करने वालों खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग- महानिदेशक
एनडीआरएफ के महानिदेशक एस एन प्रधान ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर आगरा की घटना की जानकाररी साझा की। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि, वह सभी राज्य सरकारों, जिला एवं स्थानीय प्रशासन से अपील करते हैं कि वे अपने क्षेत्र में सभी खुले बोरवेल को सख्ती से विनियमित करें और नियमों का उल्लंघन कर लोगों की जान जोखिम में डालने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
लगातार ऐसी घटनाएं देखने को मिलती है
बता दें, कि ये पहली बार नहीं हुआ है जब कोई बच्चा बोरवेल में गिरा हो। देशभर में ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं जब असुरक्षित रूप से खुले हुए बोरवेल में बच्चे गिर जाते हैं। कड़ी मशक्कत के बाद कईयों की जान बचा ली जाती है। लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चों को सुरक्षित वापस लाना संभव नहीं हो पाता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार
आपको बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2006 से 2013 तक गड्ढ़ों और मेनहोल में गिरकर मरने वालों का रिकॉर्ड दर्ज करता था। 2014 से उसने इस सूची में बोरवेल में गिरकर मरने वालों को भी शामिल किया। हालांकि, 2014 से 2015 तक बोरवेल में गिर कर मरने वालों की संख्या में कमी आई है।
प्रिंस के बोरवेल से निकलने के बाद से 2015 तक करीब 16,281 लोगों की जान बोरवेल, गड्ढ़ों और मेनहोल ने ली ह।. एनसीआरबी की मानें तो 2014 में 953 लोगों की मौत बोरवेल, गड्ढ़ों और मेनहोल में गिरने से हुई। इनमें से 50 की जान बोरवेल में गई। इन 50 लोगों में 8 बच्चे थे, जिनकी उम्र 14 साल से कम है। वहीं, 2015 में बोरवेल, गड्ढ़ों और मेनहोल ने 902 लोगों की जान ली। इनमें से 72 बोरवेल में गिरे थे। इन 72 में से 26 बच्चे थे, जो 14 साल से कम के थे।
2006 से 2015 तक कितने लोगों की जान ली बोरवेल, गड्ढ़ों और मेनहोल ने :-
2006 – 1562
2007 – 1835
2008 – 1880
2009 – 1826
2010 – 1743
2011 – 1847
2012 – 1752
2013 – 1981
2014 – 953
2015 – 902
कुल – 16,281
हाल ही में और भी कई दर्दनाक घटनाएं हो चुकी हैं।
मीडिया और अन्य माध्यमों से मिली जानकारी को देखें तो मई 2019 में नोएडा के सेक्टर 39 में बोरवेल में गिरकर दो मजदूरों की मौत हो गई थी। अक्टूबर 2018 में गुजरात के साबरकांठा जिले में 200 फुट गहरे बोरवेल में गिरने से डेढ़ साल के बच्चे की मौत हो गई। नवंबर 2017 में राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले के पनियाला गांव में खुले बोरवेल में गिरे बच्चे का शव निकला था। 7 मार्च 2016 को दक्षिण मुंबई स्थित गिरगांव के फणसवाड़ी इलाके में बोरवेल में गिरने से दो मजदूरों की मौत हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन :-
बता दें कि 2009 में बोरवेल से होने वाली बच्चों की मौत को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी की थी। लेकिन अभी तक उनके गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया, जिसका प्रमुख उदाहरण है, लगातार होते ये हादसे।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस :-
इन सबके बावजूद भी न तो सुप्रीम कोर्ट के नियमों का पालन हो रहा है और न इन हादसों को लेकर प्रशासन कोई सख्त कार्रवाई कर रही है। इसलिए सरकार को चाहिए की, सरकार उन सभी पर कड़ा से कड़ा एक्शन ले, जो बोरवेल को खुला छोड़ देते है। और इसे लेकर संबंधित व्यक्ति और बोरवेल कंपनी के विरूद्ध आर्थिक दण्ड के साथ ही, सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए। जिससे ये बोरवेल और लोगों की जान न ले सकें।
गौरतलब है कि बारिश के मौसम में लगातार इस तरह के हादसों में इजाफा होता है। इसलिए सरकार और प्रशासन दोनों को बिना समय गंवाये इन हादसों को अमल में लाते हुए जल्द कड़े प्रावधान करने चाहिए।
खुले बोरवेल पर रखवाया जाए ढक्कन: मुख्यमंत्री
आगरा की घटना को ध्यान में रखते हुए सीएम योगी ने बैठक में अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि, खुले बोरवेल से मनुष्यों और पशुओं दोनों का जीवन संकट में पड़ जाता है। इसलिए अभियान चलाकर खुले बोरवेल को बंद कराया जाए और उन पर ढक्कन रखवाया जाए।
उन्होंने कहा कि, बरसात का मौसम प्रारंभ हो गया है। वर्षा काल में विभिन्न बीमारियों, इंसेफेलाइटिस, डेंगू, मलेरिया व चिकनगुनिया आदि का प्रकोप बढ़ता है। इसके दृष्टिगत संक्रामक रोगों की प्रभावी रोकथाम के लिए कार्य योजना बनाकर पूरी तैयारी कर ली जाए।