नई दिल्ली : चीन के वुहान से निकले कोरोना ने ना जानें कितने घरों को उजाड़ दिया, कितने घरों की खुशियां छिन ली, कितनों की मां और कितनों के पिता और कितनों का पूरा परिवार। कोरोना की इसी चपेट में उत्तर प्रदेश के बलिया के दलनछपरा गांव के रहने वाला अंकुश का परिवार भी आ गया। जिसने उसकी मां को निगल लिया। वहीं पिता संतोष पासवान की मौत तीन साल पहले ही कैंसर से चुकी है। जिससे अब इस घर में सिर्फ तीन बहनें और अंकुश बचे है।
मां के असामयिक निधन के बाद भी 7 साल के अंकुश के हौसले बुलंद हैं और वह अपनी बहनों (काजल, रूबी, रेनू उर्फ सुबी) की जिम्मेदारी उठाने को तैयार है। वह बड़ा होकर पुलिस अधिकारी बनना चाहता है लेकिन अंकुश की बहनें मायूस हैं। वे कहती हैं कि अब सब कुछ भगवान भरोसे है और उन्हें दूसरे के खेतों में मजदूरी कर गुजर बसर करना होगा। जिलाधिकारी अदिति सिंह से जब इस मामले में जिला प्रशासन के कदम को लेकर पूछा गया, तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
वहीं बैरिया के उप जिलाधिकारी प्रशांत नायक ने बताया कि घटना से वह अवगत हैं। उन्होंने कहा, ‘इन बच्चों के परिवार का कोई और सदस्य अगर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी लेता है तो इनके भरण पोषण के लिए हर महीने दो हजार रुपये छात्रवृत्ति के रूप में 18 वर्ष की उम्र होने तक दिया जाएगा।’ उन्होंने कहा, ‘अगर कोई बच्चों की जिम्मेदार नहीं लेता है तो ऐसी स्थिति में बाल संरक्षण केंद्र के माध्यम से बच्चों को शेल्टर होम में रखा जाएगा।’ यह गांव स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद का ससुराल है। डॉ राजेन्द्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी का इसी गांव में मायका है।
गौरतलब है कि जब पीएम मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें थें, तो उन्होंने अपने विधायकों और सांसदों को गांव को गोद लेने को कहा था। जिसमें से कुछ गांवों को गोद तो लिया गया और कई अभी भी बिना गोद के है। वहीं अब जब इन बच्चों के सिर पर कोई छत्त नहीं है, तो कोई भी नेता या विधायक इन बच्चों की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।