नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के ऐलान के बाद अमेरिकी सुरक्षाबल अफगानिस्तान से पलायन कर वापस अपने स्वदेश को लौट गये। इसके बाद एक बार फिर तालिबान अपने पूरे लव लश्कर के साथ अफगानिस्तान को पूरी तरह अपने कब्जे मे लेने को लेकर आगे बढ़ चुका है और वह लगातार अफगानिस्तान के नई क्षेत्रों को अपने कब्जे में ले रहा है। खबरों की मानें तो तालिबना के इस बढ़ते गति के बीच पाकिस्तान भी उसके कदम से कदम मिला रहा है, और राह दिखा रहा है।
पाकिस्तान और तालिबान के इस कूटनीतिक चाल को लेकर अब भारत ने भी अफगानिस्तान के लिए प्लान बी पर काम करना शुरू कर दिया है। फिलहाल, उसे अफगानिस्तान में सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति के कारण कंधार से करीब 50 राजनयिकों और सुरक्षाकर्मियों को वापस बुलाना पड़ा है।
जानिए क्या है ‘प्लान बी’
विदेश मंत्री एस. जयशंकर रूस और ईरान के दौरे के बाद इसी हफ्ते ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान जाने वाले हैं ताकि तालिबान से लोहा लेने वाले पुराने नॉर्दर्न अलायंस के सदस्य देशों के साथ रणनीति बनाई जा सके। आपको बता दें कि अफगानिस्तान में दूसरी सबसे बड़ी आबादी ताजिक जनजाति की है। इसने अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में तालिबान से दो-दो हाथ किया था। भारत ने ताजिक लड़ाकों को 1990 के दशक में ट्रेनिंग, हथियार और दूसरी अन्य तरह की मदद दी थी।
पहले भी तलिबान के विरूद्ध एक साथ आ चुके है भारत, रूस और ईरान
बता दें कि इससे पहले भी तालिबान के विरूद्ध भारत ही नहीं, रूस और ईरान ने मिलकर नॉर्दर्न अलायंस का साथ दिया था। यह जगजाहिर है कि भारतीय वायुसेना ने वहां अपना एयरबेस भी बना लिया था ताकि ताजिक लड़ाकों को सारी सुविधाएं दी जा सकें और मौका पड़ने पर युद्ध में उसे बैकअप भी दिया जा सके। इसी तरह, उज्बेकिस्तान ने अपने अफगानी उज्बेक लीडर और मिलिट्री कमांडर जनरल राशिद दोस्तम के जरिए अफगानिस्तान के सीमाई प्रांतों में अपना दबदबा कायम रखा था।
तालिबान के बढ़ते दखल का यह खतरा
इस खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अफगानिस्तान में उपद्रव का असर उसके उत्तरी इलाकों के जरिए मध्य एशिया तक पहुंच सकता है। रूस ने ऐलान कर रखा है कि मध्य एशिया के देश सहित उसके किसी भी सहयोगी देश पर तालिबान की छाया पड़ी तो वो चुप नहीं बैठेगा। उसने ताजिकिस्तान में वायुसैनिक अभ्यास भी किया है। तालिबान की बढ़ती ताकत को देखते हुए 1000 से ज्यादा अफगान सैनिक सीमा पार करके ताजिकिस्तान चले गए।
उज्बेकिस्तान के सामने भी भारत जैसी चुनौती
तालिबान के बढ़ते प्रभाव से उज्बेकिस्तान का अफगानिस्तान में बड़ा हित दांव पर लग गया है। वह भारतीय ट्रांसमिशन लाइंस के जरिए काबुल में बिजली सप्लाइ कर रहा है। वह उत्तरी ईराक को जोड़ने के लिए सीमा के दोनों तरफ इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स पर काम कर रहा है। इसके अलावा भी उसका अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाएं चल रही हैं।
अमेरिका के निकलते ही बदल गया पाकिस्तान
आपको बता दें कि इस बार तालिबान अफगानिस्तान में बहुत चालाकी से अपना दांव चल रहा है। वो उत्तरी सीमाओं और ईरान से लगी सीमा पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहा है जहां से उसकी कमाई हो रही है। कई भारतीय सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि तालिबान को संभवतः पाकिस्तान से सैन्य रणनीति का खाका दिया जा रहा है जिसके दम पर तालिबान सीमा व्यापार को अपने नियंत्रण में ले रहा है।
राजस्व वसूली में जुट गया तालिबान
बता दें कि नाटो के सदस्य देशों के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और चीन तक, ज्यादातर देशों ने अफगानिस्तान से अपना बोरिया-बिस्तरा बांध लिया है। उधर, तालिबान के समर्थन में लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तानी आतंकी समूहों की गतिविधियां भी बढ़ गई हैं। अफगानी सुरक्षा बलों के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तानी सुरक्षा बलों की भागीदारी के भी सबूत मिल रहे हैं। तालिबान ने पिछले हफ्ते पंजवाई और जारे पर कब्जा करते हुए पाकिस्तान सीमा पर स्थित स्पिन बोल्डक का रुख कर लिया है। उसने पश्चिम में ईरान सीमा पर इस्लाम काला क्रॉसिंग और तुर्कमेनिस्तान बॉर्डर पर तोरघुंडी क्रॉसिंग पर कब्जा कर लिया और वहां से राजस्व वसूली कर रहा है।
85% इलाकों पर कब्जे का दावा
बहरहाल, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि कंधार शहर के पास भीषण लड़ाई के कारण भारतीय कर्मियों को कुछ समय के लिए वापस लाया गया है और भारत अफगानिस्तान की स्थिति पर करीबी नजर रख रहा है। ध्यान हो कि तालिबान ने अफगानिस्तान के 85% इलाकों पर कब्जा होने का दावा किया है। हालांकि, सुरक्षा सूत्रों का अनुमान है कि तालिबान ने अब तक अफगानिस्तान के एक तिहाई इलाके (33%) पर ही कब्जा पाने में सफलता पाई है, लेकिन ये वैसी जगहें हैं जो शहरों और महत्वपूर्ण हाइवेज की गतिविधियां नियंत्रित होती हैं।