सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार, 25 नवंबर 2024 को संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह याचिकाएं पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य द्वारा दायर की गई थीं। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, और प्रस्तावना तक इस अधिकार का विस्तार होता है।
भारत में समाजवाद का मतलब एक कल्याणकारी राज्य है
यह शब्द 1976 में इंदिरा गांधी सरकार के द्वारा किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए थे। कोर्ट ने कहा कि ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भारतीय संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं और इसे बदलने की कोई आवश्यकता नहीं है। सीजेआई खन्ना ने इस संदर्भ में भारतीय समाजवाद की व्याख्या करते हुए कहा कि भारत में समाजवाद का मतलब एक कल्याणकारी राज्य है जो लोगों के कल्याण के लिए काम करता है और समान अवसर प्रदान करता है।
यह निर्णय इस पर भी आधारित था कि संविधान में बदलाव संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और यह बदलाव संविधान की प्रस्तावना को भी प्रभावित करता है। इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में एसआर बोम्मई मामले में ‘धर्मनिरपेक्षता’ को संविधान की मूल संरचना का हिस्सा मानते हुए इसे अपरिवर्तनीय बताया था।