राजस्थान के कोटा स्थित जेके लोन अस्पताल में अबतक 110 बच्चों की मौत हो चुकी है। इन मौतों पर जमकर राजनीति भी हो रही है। खुद राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी कहा था कि इन मौतों पर जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
आपको बता दें की साल 2018 में इस तरह की खतरे की घंटी बजी थी लेकिन किसी ने भी इसपर गौर नहीं किया। उस समय अस्पताल की एक सोशल ऑडिट में यह खुलासा हुआ था कि अस्पताल के 28 में से 22 नेबुलाइजर्स काम नहीं कर रहे हैं। इन्फ्यूजन पंप, जिनका इस्तेमाल नवजात बच्चों को दवा देने के काम मे किया जाता है, उनमें 111 मे से 81 काम नहीं कर रहे थे। वहीं लाइफ स्पोर्ट मशीनों की मानें तो 20 मशीनों में से सिर्फ 6 मशीन ही इस्तेमाल करने लायक बची थी। इस नजरिये से देखा जाए तो अस्पताल में बड़ी संख्या में उपकरण खराब हो चुके थे।
बच्चों की मौत के आंकड़ें
साल 2019 में अस्ताल में 16,915 बच्चों की भर्ती हुई थी जिसमें से 963 बच्चों की मौत हो गई। जबकि साल 2018 में 16 हजार 436 बच्चों की भर्ती हुई थी औऱ 1005 की मौत हो गई। 2014 से यह संख्या लगभग 1100 हर साल था। मृत्यु दर को नीचे लाने के लिए डॉक्टरों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत क्या है उसके बारे में कभी किसी से कोई चर्चा नहीं हुई।
कुल मिलाकर देखा जाए तो अस्पताल में न सिर्फ स्टाफ की कमी है बल्कि उपकरण भी मौजूद नहीं है औऱ जो है वह भी सही नहीं है। अस्पताल का बुनियादी ढांचा बिल्कुल भी सही हालात में नहीं है। हालात ऐसे हैं कि एक बिस्तर पर तीन बच्चों का इलाज किया जा रहा है। साफ-सफाई के नाम पर अस्पताल बदहाली से जूझ रहा है। ऐसी स्थिति अगर किसी भी अस्पताल में रही तो बच्चों की मौत होना स्वभाविक है।