आज देशभर में डिजिटल इंडिया की बात होती है, मेक इन इंडिया की बात होती है और इसे लेकर ना जाने कितनी योजनाएं हैं जो जनता तक पहुंच रही है। लेकिन उत्तराखंड जिले के कई गांव आज भी ऐसे हैं जहां के लोग इन योजनाओं के महरुम हैं। विकास की बात को कोसो दूर है, वहां जरूरत की छोटी से छोटी चीजों के लिए भी लोगों को दो चार होना पड़ता है।
थराली विकासखण्ड के रतगांव, तालगैर ,रुईसान ऐसे गांव हैं जहां के लोग आज भी दूरसंचार जैसी व्यवस्थाओं से पूरी तरह महरूम हैं। इन गांवों में बमुश्किल ही मोबाइल नेटवर्क के सिग्नल मिल पाते हैं। वहीं देवाल विकासखण्ड के घेस, हिमनी बलाण, खेता, मानमती, सौरीगाड़,तोरती, लिंगड़ी, झालिया,ऐसे गांव हैं जहां के लोग आज भी मोबाइल कनेक्टिविटी से कोसो दूर हैं। कंप्यूटर के इस युग में इन गांवों के ग्रामीणों को आज भी दूर दराज में बैठे अपने परिजनों से बातचीत के लिए डाक सेवा की मदद लेनी होती है।
हालांकि पिंडरघाटी में खेता गांव में BSNL का एक मोबाइल टावर लगा जरूर है लेकिन आए दिन लाइन खराब होने की वजह से सिंग्नल कम ही मिलते हैं। ऐसे में इन दूर- दराज के गांवों में यदि कोई अनहोनी होती है तो मोबाइल कनेक्टिविटी के अभाव में ये ग्रामीण राहत बचाव कार्यो के लिए प्रशासन की न कोई मदद ले सकते हैं और न ही उन्हें कोई सूचना दे पाते हैं। इसका ताजा उदाहरण बीते दिनों घेस हिमनी मोटरमार्ग पर हुई दुर्घटना है। जहां सड़क दुर्घटना ने 9 लोगो की जिंदगियां ले ली थी।
इस दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि अगर इस इलाके में मोबाइल की कनेक्टिविटी होती तो समय रहते स्थानीय प्रशासन को सूचना दी जा सकती थी। जिससे राहत बचाव कार्य जल्दी हो जाता और संभावना रहती की समय पर उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा सकता। लेकिन ये बुनियादी सुविधा नहीं होने के कारण कई लोगों ने अपनो को खो दिया। यहां के लोगों को सरकार और प्रशासन से उम्मीद है कि इन गांवों में भी बेहतर संचार सुविधाएं जल्द से जल्द मुहैया करवाई जाए।