महाकुंभ 2025 के आयोजन के साथ अखाड़ों में बड़ी प्रशासनिक बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अखाड़ों की कार्यकारिणी भंग कर राष्ट्रपति शासन की तर्ज पर पंचायती व्यवस्था लागू की गई है। महाकुंभ के समापन से पहले अखाड़े अपनी नई सरकार का चुनाव करेंगे, जो अगले छह वर्षों तक उनकी आंतरिक व्यवस्थाओं का संचालन करेगी।
अखाड़ों में ‘राष्ट्रपति शासन’ क्यों?
महाकुंभ के आरंभ के साथ ही सभी सात प्रमुख अखाड़ों की कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। इसके तहत अखाड़ों की कार्यकारिणी को भंग कर दिया गया है।
अब कुंभ अवधि तक पंचायती व्यवस्था के माध्यम से फैसले लिए जाएंगे। सभी निर्णय धर्म ध्वजा के पास स्थापित ‘चेहरा-मोहरा’ प्रणाली के तहत होंगे।
अखाड़ों की प्रशासनिक संरचना
अखाड़ों के विशाल संगठन को चलाने में ‘अष्टकौशल’ (आठ महंतों की समिति) की अहम भूमिका होती है। यह समिति अखाड़ों के आर्थिक और आध्यात्मिक मामलों का प्रबंधन करती है।
अष्टकौशल: आठ महंतों का चुनाव किया जाता है, जो सभी निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
सहायक उप-महंत: अष्टकौशल की सहायता के लिए आठ उप-महंत नियुक्त किए जाते हैं।
आर्थिक प्रबंधन: पैसों का हिसाब-किताब भी अष्टकौशल के माध्यम से होता है।
प्रयागराज में अखाड़ों की छावनी स्थापित होने के साथ ही कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त मान लिया गया। महाकुंभ के दौरान पंचायती परंपरा के तहत निर्णय लिए जाएंगे।
चेहरा-मोहरा: कुंभ की अस्थायी सरकार
जूना अखाड़ा के महंत रमेश गिरि के अनुसार, जब अखाड़ों के सदस्य छावनी में प्रवेश करते हैं, तो कार्यकारिणी का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। इसके बाद, महाकुंभ के दौरान सभी प्रशासनिक और धार्मिक व्यवस्थाएं ‘चेहरा-मोहरा’ प्रणाली के तहत संचालित होती हैं। यह अस्थायी प्रणाली महाकुंभ के दौरान हर निर्णय को पारदर्शी और सामूहिक सहमति से पूरा करती है। महाकुंभ के समापन से पहले अष्टकौशल का गठन किया जाएगा, जिसका कार्यकाल अगले छह वर्षों तक चलेगा।
पंचायती परंपरा की अहमियत
अखाड़ों में निर्णय लेने की प्रक्रिया पंचायती व्यवस्था पर आधारित है। सभी प्रमुख फैसले पंचों द्वारा लिए जाते हैं। शिकायतों और अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के लिए भी पंचायत की मदद ली जाती है। निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, पंचायती अटल अखाड़ा जैसे नाम इस परंपरा को दर्शाते हैं।
Mahakumbh के लिए नई व्यवस्था
महाकुंभ 2025 न केवल धार्मिक, बल्कि प्रशासनिक रूप से भी ऐतिहासिक बन रहा है। पंचायती परंपरा और चेहरा-मोहरा प्रणाली अखाड़ों की पारंपरिक व्यवस्थाओं को कायम रखते हुए उनके संचालन को पारदर्शी बनाती है। नई सरकार का गठन महाकुंभ के समापन से पहले होगा और इसका कार्यकाल छह वर्षों तक चलेगा।