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साल के पहले पूर्ण चंद्र ग्रहण को जानें कहां और किस समय देखें, भारत में देखा जा सकेगा ब्लड मून?

By: RNI Hindi Desk 
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साल के पहले पूर्ण चंद्र ग्रहण को जानें कहां और किस समय देखें, भारत में देखा जा सकेगा ब्लड मून?

रिपोर्ट: सत्यम दुबे

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के दूसरे लहर का कहर लगातार जारी है। कोरोना से संक्रमित मरीज ऑक्सीजन और दवाईयों की कमीं से लगातार दम तोड़ रहें हैं। महामारी के दूसरे लहर ने कई हंसते-खेलते परिवारों को तबाह कर दिया है। वहीं इस साल का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण 26 मई बुधवार को होगा। पूर्ण चंद्रग्रहण को सुपरमून और ब्लड मून भी कहा जा रहा है। ग्रहण के दौरान ब्लड मून की अवधि 14 मिनट ही है, इन 14 मिनट में चंद्रमा सुर्ख लाल हो जाएगा।

आपको बता दें कि ब्लड मून भारत में नहीं देखा जाएगा। भारत में यह उपछाया चंद्रग्रहण है। इसलिए ग्रहण का सूतक काल मान्य नहीं होगा। ग्रहणकाल में सूतककाल के समय शुभ कार्य, खाना और पीना नहीं किया जाता है। मान्यता है कि इससे दोष लगता है। आइए जानते हैं कि भारत में किस समय और कहां देखा जा सकेगा चंद्रग्रहण…

भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार , पूर्ण चंद्रग्रहण सुबह 2:17 बजे शुरू होगा और शाम 7:19 बजे तक दिखाई देगा। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, पोर्ट ब्लेयर से ग्रहण को शाम पांच बजकर 38 मिनट से 45 मिनट तक के लिये देखा जा सकता है। वहीं पुरी और मालदा में शाम 6 बजकर 21 मिनट पर ग्रहण देखा जा सकता है, केवल दो मिनट के लिए।

आपको बता दें कि ग्रहण का आंशिक चरण 15 घंटे.15 मिनट भारतीय मानक समय से शुरू होगा। कुल चरण 16 घंटे 39 मिनट भारतीय मानक समय से शुरू होगा। कुल चरण का समापन 16 घंटे 58 मिनट भारतीय मानक समय पर होगा। आंशिक चरण 18 घंटे 23 मिनट भारतीय मानक समय पर समाप्त होगा।

देश में, चंद्रोदय के ठीक बाद, ग्रहण के आंशिक चरण की समाप्ति बस कुछ क्षणों के लिए भारत के उत्तरपूर्वी हिस्सों (सिक्किम को छोड़कर), पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों, ओडिशा, अंडमान और निकोबार द्वीप के कुछ तटीय भागों से दिखाई देगी। भारत में ये उपच्छाया चंद्रग्रहण है।जबकि यह पूर्ण ग्रहण यानी कि ब्लड मून दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के कुछ क्षेत्रों में देखा जा सकेगा।

ज्योतिष  की मानें तो उपच्छाया चंद्रग्रहण को कोई चंद्रग्रहण नहीं माना जाता क्योंकि जब भी कोई चंद्रग्रहण घटित होता है तो, उससे पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया में प्रवेश करता है, जिसे ज्योतिष में चंद्र मालिन्य कहते हैं। पृथ्वी की इस उपछाया से निकलने के बाद ही, चंद्रमा उसकी वास्तविक छाया के अंतर्गत प्रवेश करता है और इसी स्थिति में वास्तविक रूप से, पूर्ण अथवा आंशिक चंद्रग्रहण लगता है। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि जब पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करने के बाद, वहीं से बाहर निकल जाता है। जिससे वो पृथ्वी की असली छाया तक प्रवेश नहीं कर पाता. इस स्थिति में चंद्रमा की सतह पृथ्वी से देखने पर, कुछ धुंधली प्रतीत होती है और उसका बिम्ब भी सामान्य से धुंधला पड़ जाता है।

आपको बता दें कि यह बिम्ब इतना हल्का होता है कि, आप इसे पृथ्वी से अपनी नग्न आंखों से नहीं देख सकते. इसी स्थिति को उपच्छाया चंद्रगहण कहा जाता है। चूंकि इस दौरान चन्द्रमा का कोई भी भाग ग्रसित नहीं होता, इसलिए इसे ग्रहण की मुख्य श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इस कारण इस उपच्छाया ग्रहण का सूतक भी माननीय नहीं होता।

 

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