समय के साथ खेती में कई प्रयोग हुए, हर बार के प्रयोग से खेती की तकनीकों में कुछ-ना कुछ बेहतर बदलाव आते रहे। जिनकी जानकारी से आप अच्छी उपज लेने का आधार रख सकते हैं। आम तौर पर लता या बेल वाली सब्जियों जैसे लौकी, तोरई, कददू, तरबूज, खरबूजा, पेठा, खीरा, टिण्डा और करेला जैसी खेती मैदानी भागो में, गर्मी के मौसम में मार्च से लेकर जून तक की जाती है।
अधिक उपज और आमदनी के लिए पहले सब्ज़ियों की पौध तैयार करते समय उन्नत और संकर क़िस्मो के बीजों का चयन करना चाहिए जैसे —
खीरा – के लिए जापानीज लोंग ग्रीन, स्ट्रेट एट, पोइन सेट, पूसा उदय, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण शीतल, स्वर्ण पूर्णा, पूसा संयोग, और पंत संकर खीरा…..
लौकी- के लिए काशी गंगा, नरेन्द्र रश्मि, नरेन्द्र ज्योति, पूसा नवीन पूसा संदेश, पंजाब कोमल, पूसा मेघदूत, पूसा मंजरी और पूसा हाइब्रीड…
कुम्हड़ा- के लिए काशी हरित, पूसा विशेष, पूसा विश्वास और पूसा हाइब्रीड-1….
पेठा – के लिए काशी धवल, काशी उज्ज्वल, और पूसा उज्ज्वल…
करेला- के लिए काशी उर्वशी, पूसा विशेष, पूसा दो मौसमी, कल्याणपुर बारामासी, अर्का हरित, अर्का सुमित, अर्का सुजात, पूसा हाइब्रीड-1 और पूसा हाइब्रीड-2….
आरा तोरई – के लिए पूसा नसदार, पुसा सदाबहार, सतपुतिया, स्वर्ण मंजरी और स्वर्ण उपहार-
घिया तोरई – के लिए आई.वी.एस.जी.-1, पूसा चिकनी, पूसा सुप्रिया, और पूसा स्नेहा-
खरबूजा- के लिए काशी मधु, दुर्गापुरा मधु, हिसार मधुर, पंजाब सुनहरी, हरा मधु, पूसा सरबती, पूसा मधुरस, अर्का जीत, अर्का राजहंस, पंजाब हाइब्रीड और पूसा रसराज।
बीजों को बोने के पहले, अंकुरण की जाँच कर लेना ज़रूरी है। अंकुरण जाँच करने के लिए पहले बीजों को पानी में भिगोते हैं। उसके लिए खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, कुम्हड़ा के बीज को 3-4 घन्टे, लौकी, तोरई, पेठा के बीज को 6 से 8 घन्टे,और करेला बीज को 48 घन्टे तक पानी में भिगोते हैं, इसके बाद इन बीजो को एक सूती कपड़े या बोरे के टुकड़े में लपेट कर किसी गर्म स्थान जैसे भूसा या गर्म राख के पास रखते हैं, और बुआई के 3-4 दिन बाद बीजों में अंकुरण हो जाता है।
खेत की अन्तिम जुताई के समय 200 से 500 क्विंटल गोबर की खाद मिलानी चाहिए। अच्छी उपज लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 240 किग्रा यूरिया, 500 किग्रा सिंगल सुपर फॉस्फेट और 125 किग्रा पोटास की ज़रूरत होती है। इसमे SSP और पोटास की पूरी मात्रा और यूरिया की आधी मात्रा नाली बनाते समय कतार में डालते हैं।
यूरिया की चौथाई मात्रा रोपाई के 20-25 दिन बाद देकर मिट्टी चढ़ा देते हैं और चौथाई मात्रा 40 दिन बाद टॉपड्रेसिंग से देनी चाहिए। लेकिन जब पौधों को गड्ढ़े में रोपते हैं, तो प्रत्येक गड्ढ़े में 30-40 ग्राम यूरिया, 80-100 ग्राम SSP और 40-50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटास देकर रोपाई करते हैं।
इन सब्जियों की बुआई के लिए ”नाली या थाली” तकनीक अच्छी मानी जाती है। इसके लिए अगर सम्भव हो तो पूरब से पश्चिम दिशा की ओर 45 सेमी चौडी और 30-40 सेमी. गहरी नालियां बुआई से पहले बना लेते हैं। एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी खीरा और टिण्डा में 2 मीटर रखते हैं इसी तरह कद्दू,पेठा,तरबूज, लौकी और तोरई में 4 मीटर तक रखी जाती है।
प्रत्येक नाली के उत्तरी किनारे पर थाला बना लेते हैं। एक थाले से दूसरे थाले की दूरी छप्पन कद्दू, टिण्डा और खीरा में आधा मीटर रखते हैं,…और कद्दू, करेला, लौकी और तरबूज में पौना से लेकर 1 मीटर तक रखते हैं। इस विधि से खेती करने से खाद,पानी और निराई गुडाई पर कम खर्च आता है, और पैदावार भी अधिक मिलती है। नालियों के बीच की जगह सिंचाई नहीं की जाती जिससे बेलों पर लगने वाले फल गीली मिट्टी के सम्पर्क में नहीं आते और खराब होने से बच जाते हैं।
रोपाई के लिए पॉलीथीन की थैलियों से मिट्टी सहित पौधा निकाल कर तैयार थालों में शाम के समय इनकी रोपाई करें। एक थाले में एक ही पौधा लगाना चाहिए, अगर बुआई करते हैं तो एक थाले में 2 से 3 बीज ही बोने चाहिए। रोपाई के तुरन्त बाद पौधों की हल्की सिंचाई ज़रूर कर देनी चाहिए।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती से अच्छी और क्वालिटी वाली उपज लेने के लिए क्रान्तिक अवस्थाओं में सिंचाई ज़रूर करनी चाहिए। रोपाई के 10-15 दिन बाद हाथ से निराई करके खरपतवार साफ़ कर देना चाहिए, और समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहना चाहिए। पहली गुडाई के बाद, जड़ो के आस-पास हल्की मिट्टी चढ़ानी चाहिए।