Chandipura Virus: कोरोना जैसी महामारी की दहशत को लोग अभी पूरी तरह से भूल भी नही पाए थे कि गुजरात से उपजे एक नए वायरस ने दस्तक दे दी है। इस वायरस को चांदीपुरा वायरस नाम दिया गया है और यह वायरस बच्चों के लिए घातक साबित हो रहा है।
क्यों रखा गया चांदीपुरा नाम
आपको बता दें कि साल 1964 में नागपुर शहर के चांदीपुरा में एक नए वायरस का प्रकोप देखा गया था। इस वायरस की चपेट में सबसे अधिक 14-15 साल के बच्चे आ गए थे।साल 1966 में पहली बार महाराष्ट्र में इससे जुड़े मामले आए थे।
नागपुर शहर में सबसे पहले इस वायरस की पहचान की गई थी।इसी वजह से इस वायरस को चांदीपुरा के नाम से जाना जाने लगा। रिपोर्ट्स के अनुसार 1964 के बाद इस वायरस को साल 2004 से 2006 और 2019 में आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में देखा गया था।
क्या है चांदीपुरा वायरस
वैज्ञानिकों द्वारा मिली जानकारी के मुताबिक चांदीपुरा वायरस एक RNA वायरस है, जो सबसे ज्यादा मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है। बरसात के समय में यह वायरस अधिक एक्टिव होता है।यह संक्रमित रोग मच्छर,मक्खी के काटने से होता है।
रिपोर्टस के मुताबिक इस वायरस की संक्रमण दर 9 महीने से लेकर 14 साल के बच्चों मे अधिक देखी जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है, जिससे दिमाग में सूजन की शिकायत होती है।
क्या है इसके लक्षण
चांदीपुरा वायरस मे सबसे पहले बुखार होता है।इस वायरस के लक्षण फ्लू जैसे होते हैं और इससे तीव्र इंसेफेलाइटिस (मस्तिष्क की सूजन) होती है,जो दिमाग की वृद्धि मे बाधा बन सकती है।
यह वायरस रैबडोविरिडे परिवार के वेसिकुलोवायरस जीनस का सदस्य है. यह मच्छरों, बालू मक्खी जैसे कीट पतंगों द्वारा फैलता है।यह वायरस काफी खतरनाक माना जाता है।
कैसे करें बचाव
1.यह वायरस सबसे अधिक बरसात के मौसम मे मचछर व मक्खियों द्वारा फैलता है तो आप अपने आस-पास पानी इकट्ठा ना होने दें।
2.रेत में पाई जाने वाली मक्खियों से बचाव ही चांदीपुरा वायरस से बचाव का पहला चरण है।
3.इसके बचाव के लिए कीटनाशक एवं मच्छरों को भगाने वाली कोइल का प्रयोग कर इसके खतरे को कम कर सकते है।
4.मच्छर एवं मक्खी से बचने के लिए हमें फुल कपडे पहनने चाहिए।
5.रात्रि को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग कर इस वायरस से बचा जा सकता है।
6.साथ ही वायरस से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को चांदीपुरा वायरस के जोखिमों और बचाव के बारे में जागरूक करके भी इससे काफी हद तक बचा जा सकता है और इसके प्रकोप को कम किया जा सकता है।
NOTE:यह पोस्ट समान्य जानकारी के आधार पर आधारित है और पब्लिक डोमेन में उपस्थित है RNI NEWS इस जानकारी की पुष्टि और जिम्मेदारी नहीं लेता है।
This post is written by PRIYA TOMAR