मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्तियों को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। 2023 में बने कानून को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं में कहा गया है कि सरकार ने संविधान पीठ के आदेश की अनदेखी करते हुए नियुक्तियां की हैं। लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की दृष्टि से यह मामला बेहद अहम माना जा रहा है।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2023 में निर्देश दिया था कि CEC और EC की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें प्रधान न्यायाधीश (CJI) भी शामिल होंगे। लेकिन केंद्र सरकार ने नए कानून में CJI को इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया और खुद ही चुनाव आयोग के शीर्ष पदों पर नियुक्ति कर दी।
गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इसे “लोकतंत्र का उपहास” करार दिया है और सुप्रीम कोर्ट से इस पर तत्काल सुनवाई की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
🔹 संविधान पीठ के फैसले की अनदेखी – याचिकाकर्ताओं का कहना है कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर CJI को चयन प्रक्रिया से बाहर रखा।
🔹 लोकतंत्र की निष्पक्षता पर सवाल – सरकार का सीधा हस्तक्षेप चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
🔹 नई नियुक्तियों पर सवाल – 17 फरवरी को सरकार ने ज्ञानेश कुमार को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया, जो इस नए कानून के तहत नियुक्त होने वाले पहले CEC हैं।
सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की पीठ ने मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। प्रशांत भूषण ने इस केस को प्राथमिकता देने की मांग की, क्योंकि यह सूची में 41वें स्थान पर है। इस पर कोर्ट ने आश्वासन दिया कि अत्यावश्यक मामलों के बाद इस पर सुनवाई होगी।
क्या होगा अगला कदम?
अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार के कानून को असंवैधानिक मानता है, तो यह फैसला चुनाव आयोग की स्वायत्तता को मजबूत करेगा। लेकिन अगर सरकार के पक्ष में फैसला आता है, तो केंद्र को CEC और EC की नियुक्तियों में और अधिक अधिकार मिल जाएंगे।