उत्तराखंड में केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की जीत के बाद अब पार्टी आगामी निकाय और पंचायत चुनावों में भी सफलता हासिल करने की रणनीति बना रही है। भाजपा ने केदारनाथ उपचुनाव में अपनी चुनावी रणनीति के सिद्धांतों को लागू कर जबरदस्त जीत हासिल की, और अब उसी व्यूह रचना का इस्तेमाल आगामी चुनावों में विपक्ष के मजबूत किलों को भेदने के लिए किया जाएगा।
केदारनाथ की जीत से उत्साह
केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा की जीत ने पार्टी और उसके रणनीतिकारों को जोश और ऊर्जा से भर दिया है। इसे बदरीनाथ उपचुनाव की हार के बाद मिली एक बड़ी राहत माना जा रहा है। भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि इस जीत के पीछे त्रि-आयामी रणनीति का हाथ है: संगठन की मजबूत व्यूह रचना, जमीनी पहचान और पार्टी-सरकार के बीच समन्वय।
भाजपा की व्यूह रचना का असर
भा.ज.पा. ने चुनाव के आखिरी दिन तक प्रचार की गति बनाए रखी और विपक्ष की रणनीति में उलझने की बजाय समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित किया। सीएम धामी, प्रदेश अध्यक्ष भट्ट और प्रदेश संगठन महामंत्री अजेय की टीम ने चुनावी व्यूह रचना की लगातार निगरानी की और समस्याओं को प्राथमिकता से हल किया। भाजपा के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी का कहना है कि इस रणनीति से विपक्ष के किसी भी अजेय दुर्ग को भेदा जा सकता है, जिसमें कांग्रेस के अभेद दुर्ग चकराता को भी शिकार बनाया जा सकता है।
चुनाव से पहले की तैयारी
भा.ज.पा. ने चार महीने पहले ही चुनावी रणनीति पर काम करना शुरू किया। 56 अनुभवी पदाधिकारियों की टीम को केदारनाथ चुनाव में उतारा गया, जिसमें आदित्य कोठारी, विधायक भरत चौधरी और प्रभारी मंत्री सौरभ बहुगुणा शामिल थे। इस टीम ने सबसे पहले उन कारणों की पहचान की, जो भाजपा की मुश्किलें पैदा कर सकते थे, और 50 प्रतिशत निष्क्रिय बूथों को बदलकर उन्हें सक्रिय किया।
इसके साथ ही, आरक्षित वर्ग के मतदाताओं को साधने के लिए पांच दलित नेताओं की टीम को पांच मंडलों में तैनात किया गया।
भा.ज.पा. का दावा है कि केदारनाथ की रणनीति को अन्य चुनावों में भी अपनाया जाएगा, जिससे विपक्ष के मजबूत किलों को आसानी से भेदा जा सकेगा।