नई दिल्ली : अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान लगातार ऐसी कई हरकते कर रहा है, जिससे उसके कथनी और करनी में हमेशा फर्क नजर आता है। ऐसा ही फर्क एक बार फिर तालिबान के प्रवक्ता के बयान से सामने आया है। जिसने कश्मीर में रहने वाले मुसलमानों को लेकर बड़ा बयान दिया है। बीबीसी से खास बातचीत में तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि हमारे पास कश्मीर के मुसलमानों के लिए भी आवाज उठाने का अधिकार है।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान लगातार भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध बात करने की बात कर रहा था। इसे लेकर तालिबान भारत से दोहा में बातचीत में कर रहा है। लेकिन अचानक तालिबान प्रवक्ता के इस बयान ने संबंध पर कई प्रश्न चिह्न लगा दिये है। चीन में उइगर मुसलमानों के दमन पर चुप्पी साधने वाले तालिबान ने कहा है कि उसे जम्मू-कश्मीर सहित दुनियाभर के मुसलमानों के लिए आवाज उठाने का अधिकार है।
बता दें कि तालिबान ने यह बयान ऐसे समय पर दिया है जब एक दिन पहले ही रिपोर्ट आई है कि अलकायदा ने उससे कश्मीर को लेकर मदद मांगी है। हालांकि, इससे पहले तालिबान नेतृत्व कह चुका है कि वह भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के मुद्दों में शामिल नहीं होगा और अपनी जमीन का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ नहीं होने देगा।
बीबीसी से की खास बातचीत
जूम कॉल के जरिए बीबीसी उर्दू से बात करते हुए सुहैल शाहीन ने कहा, ”मुसलमान के तौर पर भारत के कश्मीर में या किसी और देश में मुस्लिमों के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार तालिबान के पास है। हम आवाज़ उठाएंगे और कहेंगे कि मुसलमान आपके लोग है, अपने देश के नागरिक हैं। आपके कनून के मुताबिक वह सभी समान हैं।”
भारत को घाटी के प्रति ‘सकारात्मक दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए
बता दें कि इससे पहले अन्य तालिबानी प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर कहा था कि भारत को घाटी के प्रति ‘सकारात्मक दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत और पाकिस्तान को एक साथ बैठना चाहिए और मामलों को हल करना चाहिए, क्योंकि दोनों पड़ोसी हैं और उनके हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
घाटी में बढ़ सकती हैं आतंकी गतिविधियां
आपको बता दें कि अल-कायदा ने कश्मीर और अन्य तथाकथित इस्लामी भूमि की ‘मुक्ति’ का आहवान किया है। जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा घाटी में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं, ताकि तालिबान की जीत की बढ़ती भावनाओं को भुनाया जा सके।
साल 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का प्रशासन सीधे अपने हाथों में ले लिया और कई वादे किए गए, हालांकि स्थानीय निकाय चुनावों के आयोजन से राजनीतिक गतिविधि बहाल हो गई है, लेकिन अलगाव की भावना कम नहीं हुई है।