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बड़ा सवाल —- अपराधी केवल अपराधी होता है न वहां धर्म है और न मज़हब।

मेरा मानना है कानूनन प्रक्रिया जरूर होनी चाहिए लेकिन अगर आप कानून को खेल समझते हैं और सिस्टम और कानून की औकात उसे अपनी जेब में रखने की बताते हैं तब कानून का प्रेसर पॉइंट भी जीरो पर पहुंच जाता है

By RNI Hindi Desk 
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कैसा समाज है ये जो कहता है कि ” वो कच्ची उम्र का है और अभी पेशेवर अपराधी भी नहीं है। किसी को गोली मारने में पहली बार उसका नाम आया था। उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए था “। कमाल की बात है 5 लाख ईनाम वाला अपराधी नहीं है फिर वो ईनाम क्या सब्जी खरीदने के लिए दिया जाना था। पड़ोसी कहते हैं उसे पकड़ कर सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए था। उसके पिता का नाम भी कभी पहली बार किसी को मारने में आया होगा तब क्या वो तभी से सुधर गया था ? ये आग वहां से चल कर ही यहाँ तक पहुंची है।
निर्भय रेप और हत्या केस हम सभी को याद है जिसमें केजरीवाल सरकार ने न केवल सुधारा बल्कि पैसे दे कर विदेश भी सेटल कर दिया लेकिन निर्भया का ददर्नाक अंत और उसके परिवार का ताउम्र का दर्द कोई मायने नहीं रखता। न जाने किसी भी हत्या या अपराध को जस्टिफाई कैसे ये दोगला समाज कर देता है। अपराधी के मानवाधिकार की बात सभी करते हैं मानो मरने वाले का कोई मानवाधिकार ही नहीं था। मुझे लगता है इनके अनुसार उसकी हत्या होना और उसका मरना ही उसका मानवाधिकार है।
मेरा मानना है कानूनन प्रक्रिया जरूर होनी चाहिए लेकिन अगर आप कानून को खेल समझते हैं और सिस्टम और कानून की औकात उसे अपनी जेब में रखने की बताते हैं तब कानून का प्रेसर पॉइंट भी जीरो पर पहुंच जाता है और वो बर्फ बन कर रिजल्ट देता है। बाकि सियासत इस पर लगातार जारी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप – प्रत्यारोप लगना लोकतंत्र का ही एक हिस्सा है लेकिन जब सारा विपक्ष अपराधियों के महिमामंडन में लगेगा तब उस देश का केवल भगवान ही संभाल सकते हैं क्योंकि ज्यादातर जनता तो वोट बेचना, शराब, पैसा, फ्री की खाने की और डर के साये में माफियाओं को नेता बनाने में लगी हुई है।
शायद यही वजह है कि विपक्ष द्वारा इन एनकाउंटर को मज़हबी रंग देने पर उतरप्रदेश की योगी सरकार की यूपी पुलिस ने 183 अपराधियों के एनकाउंटर किए हैं उसकी लिस्ट जारी कर विपक्ष को जवाब दिया है। यूपी पुलिस द्वारा इस साल अभी तक 14 का एनकाउंटर हुआ है और अगर 2017 से अभी तक बात करें तब आप इस लिस्ट को देख सकते हैं —— 2017 में 28 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए थे, जिसमें 14 मुस्लिम हैं। 2018 में 41 ढेर हुए, जिसमें 14 मुस्लिम हैं। 2019 में 34 मारे गए, जिसमें 11 मुस्लिम, 2020 में 26 अपराधी मारे गए, जिसमें 5 मुस्लिम, 2021 में 26 मारे गए, जिसमें 7 मुस्लिम हैं। 2022 में 14 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए, जिसमें 1 मुस्लिम है और 2023 में अभी तक 14 अपराध मारे गए, जिसमें असद गुलाम समेत 5 मुस्लिम हैं।
अब आप खुद ही सोचिये अपराधी को अपराधी कहना सही है या उसे मज़हबी रंग दे कर सत्ता हथियाना ? मेरा मानना है अपराधी केवल अपराधी है न वहां धर्म है और न मज़हब। केवल है तो अपराध और अपराधी।
Copyright Manu Chaudhary

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