आम तौर पर आपने देखा होगा की फरवरी के महीनें में 28 दिन होते है लेकिन 4 साल के बाद इस महीने में 29 दिन हो जाते है, इसके अलावा किसी भी महीने की तारीख में कमी होती है ना वृद्धि होती है लेकिन सिर्फ फरवरी का महीना ही ऐसा महीना है जो इस नियम का पालन नहीं करता जो आइये जानते है इसके बारे में।
हम सब इस बात को जानते है की पृथ्वी सूर्य का अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है, पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगाने में 365 दिन और लगभग 6 घंटे लगाती है, अब इसके हिसाब से अगर हर साल हम इन 6 घंटो को जोड़े तो 4 साल में एक पूरा दिन बन जाता है जिसके कारण 4 साल में एक बार फरवरी में अतिरिक्त 1 दिन जोड़कर यह संतुलन बना दिया जाता है और यही कारण है की इसे अधिक वर्ष बोला जाता है और इस वर्ष में 365 नहीं बल्कि 366 दिन हो जाते है।
किसी भी अधिक वर्ष को समझने के लिये 2 कंडीशन है , पहली तो ये की आप उस वर्ष को 4 से भाग दे, अगर वो डिवाइड हो जायेगी तो वो अधिक वर्ष है अन्यथा नहीं ! उदाहरण के लिये साल 2019 में 4 का भाग देने पर वो पूरी तरह से डिवाइड नहीं होगा लेकिन साल 2020 में आप 4 का भाग देंगे तो शेषफल 0 आयेगा तो इस नियम से ये लीप वर्ष यानी अधिक वर्ष हुआ।
इस साल से पहले 2016 अधिक वर्ष था जिस दिन स्वर्गीय अरुण जेटली जी ने बजट पेश किया था और अब 2020 ! इसके बाद 2024, 2028 और साल 2032 ऐसे ठीक 4 सालों के बाद होता रहेगा।
दूसरा नियम यह है कि अगर कोई वर्ष 100 की संख्या से डिवाइड हो जाए तो वह लीप ईयर नहीं है लेकिन अगर वही वर्ष पूरी तरह से 400 की संख्या से विभाजित हो जाता है तो वह लीप ईयर कहलाएगा।
इन सबमें सबसे दिलचस्प यह है की अगर कोई 29 फरवरी को पैदा हुआ होगा तो उसे अपने 25 जन्मदिन मनाने के लिये 100 साल का होना पड़ेगा।
दरअसल अधिक वर्ष के पीछे एक कहानी भी है, माना जाता है की 2000 ईसा पूर्व ईटली पर जूलियस सीजर का राज हुआ करता था. जूलियस सीजर के समय में जो कैलेंडर प्रयोग किया जाता था, उसमें प्रतिवर्ष में 355 दिनों को शामिल किया गया था.
लेकिन इससे उन्हें समस्या होती थी क्योंकि उन्हें दो वर्ष 22 दिनों का हिसाब जोड़ना पड़ता था जिसके बाद उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था करने को बोला जिससे उन्हें दिक्क्त नहीं आये तो इसके बाद ही राज्य के ज्योतिष ने एक साल में 365 दिनों को शामिल किया और हर 4 साल में एक दिन जोड़ने का प्रस्ताव जूलियस सीजर के सामने रख दिया.
उसी के बाद साल में 365 दिन और हर 4 साल के बाद 366 दिन का वर्ष और अधिक मास की परम्परा शुरू की गयी।