पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो चुका है और इसका समापन 02 अक्टूबर को होगा। पितृ पक्ष अपने पूर्वजों को याद करने और उनके उपकार का आभार व्यक्त करने के दिन माने जाते हैं। मान्यता है कि इस बीच हमारे पूर्वज हमारे आसपास धरती लोक पर ही होते हैं। इन दिनों में पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध किया जाता है। व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है, उसी तिथि पर उसकी श्राद्ध की जाती है।
1- शास्त्रों में सुबह और शाम का समय देव कार्य के लिए, घोर अंधेरे का समय आसुरी और नकारात्मक शक्तियों की प्रबलता का और दोपहर का समय पितरों का बताया गया है।
2- इसके अलावा पितृ लोक मृत्युलोक और देवलोक के बीच और चंद्रमा के ऊपर स्थित बताया गया है। मध्य समय पितरों को समर्पित होने के कारण श्राद्ध का भोज दोपहर में खिलाकर उन्हें समर्पित किया जाता है।
3- सूरज की किरणों से ग्रहण करते हैं भोज।
4- सूरज पूर्व दिशा से निकलता है, जो कि देवों की दिशा है और दोपहर के समय वो मध्य में पहुंच जाता है। मान्यता है कि धरती पर पधारने वाले हमारे पितर सूरज की किरणों के जरिए ही श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं।
5- चूंकि दोपहर तक सूर्य अपने पूरे प्रभाव में आ चुका होता है, इसलिए दोपहर के समय पूर्वज उनके निमित्त किए गए पिंड, पूजन और भोजन को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।
6- पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मशांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
This post is written by Vinay Dubey
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