{ स्वतंत्र पत्रकार प्रणव गोस्वामी की कलम से }
नागरिकता कानून लागू होने के बाद से ही देश की राजधानी दिल्ली में एक अनूठा प्रयोग हुआ, एक ऐसा प्रयोग जिसने देश के एक बहुत बड़े तबके को एक ऐसा फार्मूला दे दिया कि आप जब चाहे देश में अराजकता फैला सकते है और कई बड़े बुद्धिजीवी आपके समर्थन में आ खड़े होंगे।
ये प्रयोग था शाहीन बाग़, दिल्ली के एक इलाके में रोड जाम कर एक मंच बनाया जाता है और भीड़ को बिठा दिया जाता है, उसमे बूढ़ी औरते और बच्चों तक को शामिल किया जाता है, मीडिया का एक गिरोह 6 महीने के बच्चे को आंदोलन का चेहरा बना देता है, अब ज़रा सोचिये जिस बच्चे को बोलना तक नहीं आया उसे क्या नागरिकता कानून की समझ होगी ? उसे तो पता भी नहीं है कि वो सड़क पर क्यों लाया गया ?
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शाहीन बाग़ में जमी भीड़ के कारण लाखो लोगों को परेशानी हुई, उनकी परमिशन के बिना कोई उस इलाके में जा भी नहीं सकता था, यह एक ऐसा प्रयोग था जिसमें जमकर देश के खिलाफ ज़हर उगला गया, तमाम विपक्षी पार्टियों ने उनसे उठने की अपील करने की बजाय उनका साथ दिया ये जानते हुए भी की इस कानून को लेकर 160 से ज्यादा याचिकायें सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। क्या इस देश के विपक्ष को देश के संविधान और कोर्ट पर विश्वास नहीं है ?
वही इसके बाद 21 फरवरी से उत्तरी दिल्ली के कई इलाकों में हिंसा और आगजनी शुरू हुई, पुलिस वालों पर सरेआम पिस्तौल तानी गयी और एक बहादुर सिपाही शहीद तक हो गया। आज सैकड़ो लोग अस्पताल में ज़िन्दगी और मौत से लड़ रहे है वही 18 लोग अपनी जान गंवा चुके है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े पैमाने पर हिंसा क्या अचानक हो सकती है ? जिस तरह से अचानक 1 दिन के अंदर अंदर इतनी भीड़ को इकठ्ठा कर दिया गया क्या ये अचानक हुआ होगा ? इतने व्यापक पैमाने पर हिंसा सुनियोजित ही होती है, और इसकी शुरुआत उसी दिन से हो गयी थी जब जाफराबाद में सड़कों को उसी पैटर्न पर घेरना शुरू किया गया जो पैटर्न शाहीन बाग़ में अपनाया गया था। इसी से साफ़ था की अब एक कोरे झूठ के दम पर जगह जगह शाहीन बाग़ बनाने की तैयारी की जायेगी।
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जब इस धरने के विरोध में मैनपुरी में धरना हुआ तो उस भीड़ पर पथराव किया गया और वही से हिंसा की शुरुआत हुई। पूरे प्रकरण को समझे तो धरने के समानांतर हिंसा, आगजनी और दंगों की तैयारी हो चुकी थी। अगर हम पिछले 80 दिनों के घटनाक्रम पर नज़र डाले तो इतना तो साफ़ है कि एक समूह नागरिकता कानून और एनआरसी को लेकर झूठ और गलतफहमी फैलाने और मुस्लिमों के अंदर भय व्याप्त करने में सफल रहा है।
इस वक़्त मुस्लिमों के एक बड़े तबके में देश में से निकाले जाने का डर है वही एक बहुत बड़े तबके को उकसाया जा चुका है कि मोदी और शाह उनके सारे अधिकार खत्म करने वाले है। यह तथ्य देश की सरकार के द्वारा बार बार स्पष्ट किया जा चुका है कि नागरिकता कानून से इस देश के लोगों का कोई लेना देना नहीं है वही एनपीआर तो साल 2010 में भी हुआ था और हर 10 साल के अंतराल पर किया जाता है, उसी आकंड़े की मदद से सरकार नीतियां तैयार करती है।
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दंगों की आड़ में छुपी समाज विरोधी शक्तियां इस कानून के नाम पर देश को जला देना चाहती है, खुफिया रिपोर्ट्स में तो यह बात साफ़ भी होती है, जांच में पाया गया है कि नागरिकता कानून पास होने के बाद हुई हिंसा में पीएफआई को 1200 करोड़ की फंडिंग हुई और रैलियों, धरनों में जमकर देश को तोड़ने की बात हुई। उपद्रवियों का प्लान था कि दिल्ली से लेकर उत्तरप्रदेश तक हिंसा का ऐसा तांडव हो जिससे देश का माहौल बिगड़ जाए और देश में अराजकता फैल जाए।
फिलहाल सरकार को चाहिए कि बिना मानवाधिकार संघठनो की परवाह किये इन दंगाइयों पर कड़ी कार्यवाही करे, देश की संपत्ति को जलाते और बंदूके लहराते ये लोग किसी भी तरह से देश के हितैषी तो नहीं हो सकते है। एक ऐसी विचारधारा देश में पनप रही है जो मुस्लिमों को भड़का रही हैं और इसे रोकना होगा।
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जब मंचों से ऐसे भाषण दिए जाते है कि { 3 तलाक़ आया हम चुप रहे, धारा 370 हटा दी हम चुप रहे, राम मंदिर के पक्ष में निर्णय आया हम चुप रहे, अब नागरिकता कानून आगे एनआरसी होगा और हम चुप नहीं बैठेंगे } तो एक बहुत बड़ा तबका डरता भी है और एक बहुत बड़ा तबका क्रोधित होकर असामान्य कदम भी उठा लेता है क्योंकि जब एक ही झूठ बार बार बोला जाता है तो वो सच लगने लगता है और इन सबको रोकने के लिये सरकार ही नहीं वरन समाज को भी आगे आना होगा।