उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। इस बिल में विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें जाति, धर्म या पंथ की परंपराओं और रीति-रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है।
जाति, धर्म व पंथ के रीति-रिवाजों में कोई बदलाव नहीं
यूसीसी विधेयक में विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान बनाए गए हैं, उनमें जाति, धर्म या पंथ की परंपराओं और रीति-रिवाजों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि विवाह धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार ही किए जाएंगे। पंडित या मौलवी द्वारा शादी कराना जारी रहेगा, और खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विवाह पंजीकरण अनिवार्य
यूसीसी के तहत विवाह और तलाक का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद से हर दंपती को विवाह और तलाक का पंजीकरण कराना होगा। पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा, और इससे सरकारी सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिलेगा।
विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़की की आयु 18 वर्ष तय की गई है। महिलाएं भी पुरुषों की तरह समान कारणों और अधिकारों के आधार पर तलाक ले सकेंगी। हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है, और महिला का पुनः विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक लगा दी गई है।
विवाह और तलाक में समान अधिकार
यूसीसी के तहत, यदि कोई व्यक्ति बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है, तो उसके जीवनसाथी को तलाक और गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा। इसके अलावा, एक पति और पत्नी के जीवित रहने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है।
जब पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े होते हैं, तो पांच साल तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।
संपत्ति में बराबरी का अधिकार
यूसीसी में संपत्ति के अधिकारों के संबंध में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। अब बेटा और बेटी को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा। इसके अलावा, जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं किया जाएगा, और नाजायज बच्चे भी दंपती की जैविक संतान माने जाएंगे। गोद लिए गए बच्चे और सरगोसी के जरिए जन्मे बच्चे भी जैविक संतान के रूप में संपत्ति का अधिकार पाएंगे।
इसके अलावा, किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी संपत्ति में अधिकार मिलेंगे, और कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को वसीयत के माध्यम से किसी भी व्यक्ति को दे सकता है।
लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण
यूसीसी में लिव-इन रिलेशनशिप को भी कानूनी रूप से मान्यता दी गई है। लिव-इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को वेब पोर्टल पर पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। पंजीकरण के बाद, युगल किराए पर घर, हॉस्टल या पीजी ले सकेंगे। लिव-इन में पैदा होने वाले बच्चों को जायज संतान माना जाएगा और उन्हें जैविक संतान के समान सभी अधिकार मिलेंगे।
इसके अलावा, लिव-इन में रहने वाले लोगों को संबंध विच्छेद का पंजीकरण भी अनिवार्य रूप से कराना होगा। पंजीकरण न कराने पर छह माह तक की सजा या 25 हजार रुपये जुर्माना लगाया जा सकता है।
गोद लेने का कोई विशेष कानून नहीं
हालांकि यूसीसी में गोद लेने के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन संपत्ति के अधिकारों में सुधार किया गया है और सभी बच्चों को समान अधिकार प्रदान किए गए हैं।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने से समाज में समानता का संदेश जाएगा। यह महिलाओं और बच्चों को समान अधिकार प्रदान करेगा और पारिवारिक मामलों में कानून की पारदर्शिता को बढ़ावा देगा।