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हज़ारों साल पहले तक्षशिला में उठा था NRC का मुद्दा: पढ़िये रोचक बहस

By: RNI Hindi Desk 
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हज़ारों साल पहले तक्षशिला में उठा था NRC का मुद्दा: पढ़िये रोचक बहस

आज इस देश में नागरिकता कानून और NRC को लेकर तमाम विरोध प्रदर्शन किये जा रहे है और इस देश में एक बहुत बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग है जो इस देश को धर्मशाला बनते हुए देखना चाहता है और बाहरी मुल्कों से आये घुसपैठियों के समर्थन में खड़ा हो गया है।

एक तरफ नरेंद्र मोदी है जो इस देश से सभी बाहरी लोगों को निकालने में लगे हुए है वही एक वर्ग ऐसा है जो उनकी इस योजना को विफल करना चाहता है, आज NRC आपको तकलीफ दे रहा हो लेकिन सच यह है कि इससे आपकी आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित हो जायेगी और देश की सीमाओं को बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिया जायेगा।

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यह संकट कोई आज का संकट नहीं है, ऐसा ही एक संकट आज से 2300 साल पहले तक्षशिला में भी आया था और उस वक़्त राजा बोमन की सभा में इस मुद्दे पर तगड़ी बहस हुई थी और उनके सेनापति रिपुदमन ने भी उस वक़्त इसका विरोध किया था।

आज एक वीडियो आपको दिखाते है जिससे आपको इस बात का अहसास होगा की आज से 2 शताब्दी पहले भी हमारे पूर्वजों की राजनीतिक बुद्धि कितनी सक्षम और सबल थी।

इस वीडियो की शुरुआत में एक सैनिक को कुछ शरणार्थी मिलते है जो की दुर सुदूर से आये हुए है, दरअसल अलेक्ज़ेंडर के आक्रमण से कई राज्य खत्म हो गए थे और लोग अपनी जान बचाकर अलग अलग जगहों में शरण लेते थे, जब सैनिक को वो लोग मिलते है तो वो उनसे रुकने के लिए कहता है और अगले दिन राज़ दरबार में इस मुद्दे पर बहस होती है।

सैनिक कहता है कि सिंधु नदी से कई नाव हमारी और आ रही है, वह अपने राजा को अलेक्ज़ेंडर के आक्रमण के बारे में भी बताता है, आगे वो उन्हें कहता है कि उसी से परेशान होकर सब लोग सिंधु नदी पार करते हुए हमारी और आ रहे है और ऐसे में क्या किया जाये ?

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इसके बाद राजा उंनसे कहता है कि जब तक काउंसिल किसी निर्णय पर न पहुंचे उन रिफ्यूजी को अंदर ना आने दिया जाए। इसके बाद दरबार में सारे अधिकारी और काउंसिल की मीटिंग होती है जिसमे इस मुद्दे को लेकर चर्चा की जाती है।

दरबार में कहा जाता है कि हमारा राज्य इस वक़्त पश्चिम से आये लोगों के कारण सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है और राजा के कहने पर यह मीटिंग बुलाई गयी है।

दरबार में कहा जाता है कि बड़ी संख्या में वृद्ध, स्त्री और बच्चे जिनमे से अधिकतर पर्सिया से है वो विस्थापित होकर यहां आ रहे है, यहां एलेक्ज़ेंडर के बारे में जिक्र करते हुए कहा जाता है की अब वो पूर्व की और आ रहा है और जो भी उसे चुनौती दे रहा है वो धूल में मिला दिया जा रहा है।

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आगे कहा जाता है की भूख और प्यास से परेशान होकर अपनी भूमि को छोड़कर ये लोग अब हमारे राज्यों की सीमा पर है तो अब क्या किया जाए ? इसके बाद कुल प्रमुख भुरिग्रवा खड़े होकर इस बात को कहते है कि यह राज्य के हित में है कि शरणार्थी यहां आये क्योंकि अगर ऐसा होता है तो राज्य की लेबर फोर्स बढ़ जायेगी और हमारे उत्पाद अधिक मात्रा में बिकेंगे जिससे राजस्व भी बढ़ेगा।

इसके बाद गुस्से से सेनापति रिपुदमन खड़े होते है और फटकारते हुए कहते है की बंद करो ये व्यर्थ की बाते, सिर्फ हम ही है जो संभ्यता और संस्कार की बाते कर रहे है, आगे वो सवाल पूछते है कि क्या आप राज्य के नागरिक के अधिकार सुरक्षित कर पाएंगे ?आज हम उन्हें रख लें लेकिन कल यही अपने अधिकारों की मांग करेंगे तब क्या होगा ?

आज जो मानवता आप इनके लिए दिखा रहे है कल वही मानवता राज्य के नागरिकों के लिए संकट बन जायेगी और भाषा और धर्म के आधार पर विभाजन होगा। कल यही घुसपैठिये आपके बीच में बैठकर आपसे ही अधिकार मांगने लग जायेगे और आपके निर्णय को प्रभावित करेंगे।

कल इन्ही लोगों के कारण असुरक्षा हो जायेगी, टकराव होगा ! क्या ये राज्य के नागरिकों के लिए उचित रहेगा ? हम अपनी सभ्यता को नहीं छोड़ सकते तो क्या वो छोड़ देंगे ? कल यही लोग आपके राज्य के हिस्से बन जाएंगे और तुम्हारे ही बीच बैठकर अपने अधिकारों को लेकर बहस करेंगे, तब आप क्या करेंगे ?

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आगे वो आवेश में आकर कहते है कि क्या यह काउंसिल मुझे इस बात की गारंटी दे सकती है कि कल को यही घुसपैठिये राज्य के विभाजन के ज़िम्मेदार नहीं होंगे ? क्या कोई मुझे इस बात की गारंटी दे सकता है कि कल को ये लोग अपने देश चले जायेगे ? क्या मुझे कोई यह समझा सकता है कि इनके आने से नागरिकों पर आप टैक्स नहीं बढ़ाएंगे ?

क्या यह दरबार मुझे आश्वस्त कर सकता है कि भविष्य में इन घुसपैठियों का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होगा ? इसके बाद रिपुदमन के विरोध में तर्क दिया जाता है कि क्या हमारे संस्कार हम छोड़ दे ! दधीचि और शिवि ने तो अपने प्राण तक दे दिए थे तो हम उन्हें क्यों नहीं अपना सकते है ?

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क्या हम समर्थ नहीं है ? स्वेच्छा से विष वही पीता है जिसमें उसे पचाने की हिम्मत होती है। तब रिपुदमन उनसे कहते है कि आप भावुक हो रहे है। वो कहते है कि इस भीड़ में अगर कोई एलेक्ज़ेंडर का गुप्तचर निकला तो आप क्या करेंगे ?

इस बहस को सुनकर आप हमारे पूर्वजों की राजनीतिक बुद्धि का अंदाजा लगाइये की कैसे आज से 2300 साल पहले इस खतरे को वो समझते थे। और आज वही ख़तरा आपके सामने है। बाकी तो देश की जनता समझदार है।

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