नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए एक बार फिर 37 साल बाद इतिहास दोहराने को है, जिसे कांग्रेस ने सन् 1984 में तोड़ा था। अब उसी इतिहास को बीजेपी दोहराने वाली है। आपको बता दें कि डीप्टी सीएम पद के लिए बीजेपी ने हरदोई से सपा के बागी विधायक नितिन अग्रवाल को आगे किया है, वहीं सपा ने सीतापुर की महमूदाबाद सीट से सपा विधायक नरेंद्र वर्मा को मैदान में उतारा है। ऐसे में अब डिप्टी स्पीकर पद के लिए वोटिंग की नौबत आई है। जिसमें क्रॉस वोटिंग होने की संभावना है। सोमवार को विधानसभा सत्र के दौरान सुबह 11 बजे मतदान शुरू होगा।
दूसरी बार आई डीप्टी सीएम चुनाव की नौबत
आपको बता दें कि सूबे के सियासी इतिहास में दूसरी बार विधानसभा डिप्टी स्पीकर पद के लिए वोटिंग की नौबत आई है। अभी तक की राजनीतिक परंपरा के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष का पद सत्तापक्ष और उपाध्यक्ष का पद मुख्य विपक्षी दल का होता रहा है। सामान्य तौर पर उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं होता है, लेकिन अपवाद के तौर पर अतीत में 1984 में उपाध्यक्ष का चुनाव मतदान के जरिए किया गया था।
1984 में पहली बार वोटिंग से हुआ था चुनाव
बता दें कि उत्तर प्रदेश विधानसभा के इतिहास में उपाध्यक्ष पद के लिए साल 1984 में मतदान हुआ था। कांग्रेस 1980 में प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर सत्ता में लौटी थी। कांग्रेस ने दो साल में दो मुख्यमंत्री बदल दिया था और 1984 में सत्ता की कमान नारायण दत्त तिवारी को सौंपी गई थी। इसी दौरान विधानसभा उपाध्यक्ष पद को कांग्रेस ने परंपरा को तोड़ते हुए विपक्षी दल को नहीं देने का फैसला किया है और हुकुम सिंह को प्रत्याशी बना दिया। ऐसे में विपक्ष ने मुरादाबाद से विधायक रियासत हुसैन को उतारा। सत्तापक्ष के पास संख्या बल होने के चलते इस चुनाव में रियासत हुसैन को हराकर बतौर कांग्रेस प्रत्याशी हुकुम सिंह उपाध्यक्ष बने थे।
पूर्व सपा उम्मीदवार पर बीजेपी ने लगाया दाव
सूबे में 37 साल के बाद फिर से विधानसभा उपाध्यक्ष के लिए वोटिंग की नौबत आई है. सपा छोड़कर बीजेपी में आने वाले नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को सत्तापक्ष ने कैंडिडेट बनाया तो सपा ने अपने विधायक नरेंद्र वर्मा को उतार दिया है, जिसके चलते अब सोमवार को विधानसभा मंडल में वोटिंग होगी। ऐसे में वोटिंग के लिए जिलेवार विधानसभा सदस्यों के नाम पुकारे जाएंगे। सदस्य बारी-बारी से आकर मत पेटिका में वोट डालेंगे और मतदान के बाद वोटों की गिनती होगी और उसके आधार पर उपाध्यक्ष के निर्वाचन की घोषणा की जाएगी।
संख्या बल में बीजेपी का पलड़ा भारी
विधानसभा के 403 सदस्यों में से अभी फिलाहल कुल 396 निर्वाचित सदस्य हैं। इनमें बीजेपी के 304 विधायक हैं जबकि सपा के 49 सदस्य हैं। इसके अलावा बीजेपी के सहयोगी अपना दल (एस) के पास 9 विधायक हैं और एक विधायक रालोद से छोड़कर आए हैं। बसपा के 16 विधायक हैं, जिनमें से करीब 10 विधायक बागी हैं। कांग्रेस के पास 7 विधायक हैं, जिनमें से दो बीजेपी के समर्थन में हैं। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के 4, निषाद पार्टी के 1 और निर्दलीय 3 हैं जबकि सात सीटें अभी रिक्त हैं।
संख्या बल के आधार पर बीजेपी की जीत तय
विधानसभा में संख्या बल के आधार पर उपाध्यक्ष पद चुनाव में बीजेपी समर्थित प्रत्याशी नितिन अग्रवाल की जीत तय मानी जा रही। वहीं, संख्या बल कम होने के बाद भी सपा ने डिप्टी स्पीकर पद पर नरेंद्र वर्मा को उतारकर वोटिंग के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। नरेंद्र वर्मा के नामांकन के दौरान विधानसभा में नेता विरोधी दल रामगोविंद चौधरी, सपा के प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य नरेश उत्तम पटेल, सपा के कई विधायक और बसपा के छह बागी विधायक भी मौजूद थे। इसके जरिए सपा अपनी ताकत दिखाना चाहती है।
अखिलेश का सियासी दांव
सूबे के विधानसभा में सपा के पास ही नहीं बल्कि सभी विपक्षी दलों के विधायकों की संख्या मिलाने के बाद भी इतने नंबर संख्या नहीं है कि डिप्टी स्पीकर को जिता सकें। इसके बावजूद सपा प्रमुख अखिलेश यादव विधानसभा उपाध्यक्ष के चुनाव लड़ाने की तैयारी में है, जिसके लिए सीतापुर के महमूदाबाद से 6 बार के विधायक नरेंद्र वर्मा को प्रत्याशी बनाया। अखिलेश भी इस बात को बाखूबी समझ रहे हैं कि वो चाहकर भी डिप्टी स्पीकर को नहीं जिता सकेंगे, लेकिन 2022 के चुनाव के देखते हुए सियासी संदेश देने का रणनीति है।
कुर्मी वोटों को पक्ष में करने की कोशिश
लखनऊ विश्वविद्यालय से पढ़े नरेंद्र सिंह वर्मा सपा के साफ सुथरे छवि वाले नेता माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश के मध्य और तराई इलाकों के कुर्मी समुदाय में उनकी गहरी पैठ है। ऐसे में सपा नरेंद्र वर्मा को अधिकृत विधानसभा उपाध्यक्ष के पद पर प्रत्याशी बनाकर बीजेपी के परंपरागत माने जाने वाले कुर्मी वोटों को अपने पक्ष में करने का दांव माना जा रहा है। वहीं, बीजेपी 2022 चुनाव से पहले सूबे के वैश्य समुदाय को सियासी संदेश देने के मकसद से नितिन अग्रवाल को उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना का दांव चला है।