कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच में गतिरोध जारी है। केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हजारों किसान कड़ाके की सर्दी के बावजूद अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। किसान एक महीने से अधिक समय पहले सिंघू बॉर्डर पहुंचे थे।
जहां देश के किसानों को कई राजनीतिक पार्टयों का समर्थन मिल रहा है। दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों का आंदोलन आज 35वें दिन में प्रवेश कर चुका है। अब सरकार और किसान के बीच होने जा कुछ ही देर में बात होने जा रही है।
आज सबकी निगाहें किसान नेताओं और सरकार के बीच होने वाली सातवीं दौर की बैठक पर टिकी हैं। बैठक की सफलता और असफलता पर ही इस आंदोलन का भविष्य टिका है। आप को बता दे कि यह बैठक दोपहर 2 बजे विज्ञान भवन में होगी।
हालांकि करीब तीन हफ्ते बाद सरकार और किसानों की बातचीत से पहले दोनों ही पक्षों ने ये साफ कर दिया है वो अपने स्टैंड पर कायम हैं। किसानों की मांग है कि कानून वापस लिया जाए जबकि सरकार कह चुकी है कि कानून वापस करना मुमकिन नहीं है।
मंगलवार को किसान संगठनों ने सरकार को ताजा पत्र लिखकर आज होने वाली वार्ता का न्योता स्वीकार करने की औपचारिक जानकारी दी। वहीं किसान संगठनों ने एक बार फिर कृषि कानूनों को रद्द करने और एमएसपी पर कानून बनाने की अपनी मांग दोहराई।
पिछली औपचारिक बैठक पांच दिसंबर को हुई थी, जिसमें किसान संगठनों के नेताओं ने तीनों कानूनों को निरस्त करने की अपनी मुख्य मांग पर सरकार से हां या ना में स्पष्ट रूप से जवाब देने को कहा था।
वार्ता बहाल करने के लिए किसान संगठनों के प्रस्ताव पर संज्ञान लेते हुए अग्रवाल ने कहा कि सरकार भी एक स्पष्ट इरादे और खुले मन से सभी प्रासंगिक मुद्दों का एक तार्किक समाधान निकालने के लिए प्रतिबद्ध है।
हालांकि, सरकार के पत्र में किसान संगठनों द्वारा प्रस्तावित एक प्रमुख शर्त का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है, जिसमें किसानों ने नये कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए तौर तरीकों पर वार्ता किये जाने की मांग की थी।